11-11-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “बाप को तुम भूलो मत श्रीमत पर सदा चलते रहो”
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शिव भगवानुवाच : “मीठे बच्चे – बाप जो सदा सुख देते हैं, रोज़ पढ़ाते हैं, ज्ञान खजाना देते हैं, ऐसे बाप को तुम भूलो मत श्रीमत पर सदा चलते रहो”
प्रश्नः– बच्चेबाप की जादूगरी कौन सी है जो मनुष्य नहीं कर सकते हैं?
उत्तर:- जब बाप अथवा टीचर को भूल जाते हैं, मुरली मिस करते हैं, पढ़ते वा सुनते नहीं हैं तो गोया बाप को कांटों के इस जंगल को बदलकर सुन्दर फूलों का बगीचा बना देना, पतित मनुष्यों को पावन देवता बना देना – यह जादूगरी बाप की है। किसी मनुष्य की नहीं। बाप ही सबसे बड़ा सोशल वर्कर है जो पतित शरीर, पतित दुनिया में आकर सारी पतित दुनिया को पावन बनाते हैं।
गीत:- “बचपन के दिन भुला न देना………………..”, अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.
-: ज्ञान के सागर और पतित-पावन निराकार शिव भगवानुवाच :-
अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रति – “मुरली”( यह अपने सब बच्चों के लिए “स्वयं भगवान द्वारा अपने हाथो से लिखे पत्र हैं।”)
“ओम् शान्ति”
शिव भगवानुवाच : बच्चों ने अपने लिए गीत सुना। तुम हो मात-पिता के क्षीर (मीठे) बच्चे। बाप क्षीर बच्चों को कहते हैं कि मम्मा बाबा कहकर कल भूल न जाना। अगर भूले तो वर्सा गँवा देंगे। परन्तु बच्चे सुनते हुए भी भूल जाते हैं। तो भी बाप सहज रास्ता बताते हैं। घरबार, गृहस्थ-व्यवहार आदि कुछ भी छुड़ाते नहीं हैं। कहते हैं गृहस्थी हो, चाहे बैचलर (कुमार) हो सिर्फ श्रीमत पर चलने का पुरुषार्थ करो। ऐसे बाप को कभी भूल न जाओ।
बाप उल्हना देते हैं कि कोई-कोई बच्चे मम्मा बाबा कहकर फिर कभी अपना समाचार भी नहीं देते हैं। बाप से स्वर्ग की बादशाही लेते हैं फिर उनको भूल जाते हैं और नर्क की जायदाद देने वाले बाप को बहुत खुशी से चिट्ठी लिखते हैं, चिट्ठी न आये तो माँ बाप भी मूँझ जाते हैं, सोचते हैं पता नहीं बीमार है क्या? तो बेहद का बाप भी ऐसे समझते हैं कि पता नहीं बच्चों का क्या हाल है? इन्तज़ार होता है ना। वो लौकिक बच्चे तो दु:ख देने वाले भी निकल पड़ते हैं, तो भी उनसे मोह नहीं जाता।
यहाँ फिर वन्डर देखो जिस बाप को कहते हैं तुम मात-पिता… सामने भी बैठे हैं। यूँ तो सब बच्चे मुरली द्वारा भी सुनेंगे। बाप जानते हैं नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार कितने सपूत हैं, कितने कपूत हैं। बाबा मम्मा कहकर फिर भी छोड़ देते हैं। गीत भी कहता है ऐसे बाप को क्यों भूल जाते हो? ऐसे बाप को रोज़ चिट्ठी लिखनी चाहिए।
बाप भी रोज़ खज़ाना देते हैं। रोज़ पढ़ाते भी हैं, प्यार भी देते हैं। बाप, टीचर, सतगुरू तीनों ही हैं। लौकिक बाप को तो बच्चे चिट्ठी लिखते हैं। गुरू को भी याद करते हैं। परन्तु जो सदा सुख देने वाला, सचखण्ड का मालिक बनाने वाला बाप है उनको भूल जाते हैं। चिट्ठी भी नहीं लिखते हैं। बाप को फिकर रहता है कि क्या हुआ? माया ने मार डाला वा विकार में ढकेल दिया।
बाबा तो मुरली में ही बच्चों को सावधान करेंगे ना। बाबा राय देंगे कि ऐसे-ऐसे अपने को बचाते रहो क्योंकि यह है बाप का सबसे बड़ा बच्चा। सबसे आगे चल रहा है। इनके पास सब प्रकार के तूफान आदि आते हैं। महावीर, हनूमान इनको ही कहेंगे। आगे रूसतम होने के कारण माया भी रूसतम हो पहले इनसे ही लड़ेगी। बाबा कहते हैं तुमको जो तूफान आते हैं वह पहले मुझे आयेंगे। जो बाबा अनुभव भी बताते हैं।
तुम कहेंगे बाबा आपको तूफान कैसे आयेंगे? आप तो बुजुर्ग हो। बाबा कहते हैं हमारे पास सब आते हैं। नहीं तो हम तुमको सावधान कैसे करें? परन्तु बच्चे बाबा को बताते ही नहीं हैं। तूफान में घुटका खाकर डूब मर जाते हैं। अपना पद भ्रष्ट कर देते हैं इसलिए बाप कहते हैं एक दो को याद दिलाते रहो – बाबा को पत्र तो लिखो। हर बात में एक दो को सावधान करो। माया बड़ी तीखी है। घूसा मार देती है।
तुम बच्चे सारी दुनिया के सच्चे सोशल वर्कर्स हो। वह हद के सोशल वर्कर हद की सेवा करते हैं, यह बाप तो सारी दुनिया का सोशल वर्कर है। सारी पतित दुनिया को पावन बनाना यह बाप के ऊपर है। बाप को ही बुलाते हैं। ऐसे बाप को बाप कह फिर बच्चे भूल जाते हैं। यह गीत भी कोई का टच किया हुआ है। जैसे कोई-कोई शास्त्र भी अच्छे बने हुए हैं जो मनुष्य अपने पास रखते हैं। यहाँ तो शास्त्र, चित्र आदि कुछ भी नहीं हैं। यह चित्र भी अपने ही बनाये हुए हैं। वह सब चित्र हैं संशयबुद्धि बनाने वाले। यह चित्र हैं निश्चयबुद्धि बनाने वाले।
दुनिया को तो यह मालूम ही नहीं कि भारत स्वर्ग था। भारत का कितना मान है। यहाँ ही शिवबाबा आते हैं। शिव को बाबा कहते हैं फिर है ब्रह्मा बाबा। विष्णु को बाबा नहीं कहेंगे। यह भी तुम बच्चे जानते हो। दुनिया के मनुष्य तो कहते हैं हे पतित-पावन आओ, हम पतित हैं आकर पावन बनाओ। परन्तु यह नहीं जानते कि वह पतित से पावन कैसे बनायेंगे। कहाँ ले जायेंगे? बस तोते के मुआफिक बोलते हैं। बिगर अर्थ कुछ भी नहीं जानते।
अरे गॉड फादर कहते हो, फादर माना प्रापर्टी और किसको फादर नहीं कहा जाता। विष्णु और शंकर को भी फादर नहीं कह सकते, तो और किसी को कैसे कहेंगे। सब समझते हैं कि गॉड फादर निराकार ही है। आत्मा इस देह में आकर पुकारती है ओ गॉड फादर। बाप आकर देही-अभिमानी बनाते हैं। तुम बाप को कहते हो बाबा हमको पावन बनाओ और पावन दुनिया में ले चलो।
शिवबाबा आते हैं – भारत में पवित्र प्रवृत्ति मार्ग बनाने। बाप कहते हैं तुम प्रवृत्ति मार्ग वाले पावन थे। तुम ही चाहते हो हम पावन बनें। स्वर्ग को याद करते हो। वैकुण्ठ कहने से श्रीकृष्ण याद आता है। यह नहीं समझते कि प्रवृत्ति मार्ग के महाराजा-महारानी, लक्ष्मी-नारायण को याद करें। अब मनुष्य चाहते हैं शान्ति। यह सारी दुनिया का क्वेश्चन है। उसकी जवाबदारी बाप के ऊपर है।
जब भारत नर्क हो जाता है तो उसको स्वर्ग बनाने बाप ही आते हैं। नर्क फिर कौन बनाते, कब बनाते हैं? यह कोई नहीं जानते हैं। बाप कहते हैं मैं तुमको स्वर्गवासी बनाता हूँ। स्वीट वर्ल्ड में ले जाए फिर तुमको स्वीट बादशाही में भेज देंगे। ऐसे बाप से तो रात दिन पढ़कर पूरा वर्सा लेना चाहिए। वास्तव में रात दिन कोई पढ़ाया नहीं जाता है।
बाबा कहते हैं सवेरे और रात को एक घण्टा रेग्युलर पढ़ो। सवेरे का समय तो सबको मिलता है। एक सेकेण्ड की बात है। सिर्फ बाबा और वर्से को याद करना है। फिर भी तुम भूल जाते हो। फिर कहते हो बाबा हम क्या करें – याद भी बड़ी सहज है।
सृष्टि चक्र का ज्ञान भी बड़ा सहज है। यह है पाप आत्माओं की दुनिया, तुमको पुण्य की दुनिया में जाना है। शिवबाबा को याद करो। गृहस्थ व्यवहार में रहने वालों के लिए भी बहुत सहज है। तो बाप बच्चों को जरूर याद करते हैं।
फलाने की कभी चिट्ठी नहीं आती है, क्या हो गया है? वा जब सामने आते हैं तो पूछता हूँ – क्या बेहोश तो नहीं हो गये थे? बाप के साथ इतना लव नहीं, पाई पैसा कमाने वाले में लव चला जाता है। बाबा को समाचार देना चाहिए, बाबा हम जीते हैं, खुश हैं। औरों को भी परिचय देते रहते हैं। बाबा तो रोज़ मुरली में याद-प्यार भेजते हैं। बाकी एक-एक का नाम तो नहीं लिख सकते हैं, तो बच्चों को भी अपना समाचार देना चाहिए।
इस समय सारी दुनिया का मुँह काला हो गया है। उनको बाबा आकर गोरा बनाते हैं। बाबा भारत का मुँह फेर देते हैं। कांटों के जंगल को फूलों का बगीचा बनाते हैं। कैसा जादूगर है, स्वर्ग के बगीचे में भारत ही होता है। वहाँ यह पता नहीं रहता कि हमारे पीछे और कौन-कौन आने वाले हैं। समझते हैं बस हम ही विश्व के मालिक हैं। सतयुग को कहा जाता है गार्डन ऑफ अल्लाह। फिर जंगल कोई गॉड नहीं बनाते। वह तो रावण बनाते हैं।
रावण पुराना दुश्मन है, जिसको कोई नहीं जानते हैं। बाबा पूछते हैं तुम किसकी सन्तान हो? बाबा हम ब्रह्मा के बच्चे हैं, शिवबाबा के पोत्रे हैं। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा वर्सा देते हैं। ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। तुम बाबा के बच्चे बने ही हो वर्सा लेने के लिए। बाबा कहते हैं याद रखना, भूलना नहीं। कहते हैं बाबा घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। अरे तुमको जो नर्कवासी बनाते हैं उनको याद करते हो और स्वर्गवासी बनाने वाले बाप को भूल जाते हो? बाप को नहीं भूलेंगे तो वर्से को भी नहीं भूलेंगे।
इस समय तो बाबा हाज़िर नाज़िर है। कहते भी हैं हाज़िराहज़ूर…वह भी गुप्त है। ऐसे नहीं कहेंगे कि हम उनको देखते हैं। आत्मा गुप्त तो बाप भी गुप्त। आत्मा शरीर में आकर बोलती है, मुझे भी शरीर चाहिए। नहीं तो आऊं कैसे? गर्भ में आऊं तो गर्भ जेल में आना पड़े। मैं गर्भ जेल में क्यों आऊं, मैंने कौन सा गुनाह किया है?
गर्भ महल तो होता है स्वर्ग में। हम स्वर्ग में आकर क्या करेंगे? स्वर्ग का मालिक तो तुम बच्चों को ही बनाता हूँ। यहाँ सम्मुख बैठ-कर सुनने से सबको मजा आता है। यहाँ से बाहर जाने से सब कुछ भूल जाते हैं। 21 जन्मों की राजाई लेना और साधारण प्रजा में पद पाना फ़र्क तो बहुत है ना। भील लोग रोटला खाते हैं। साहूकार माल खाते हैं। फ़र्क है मर्तबे का। परन्तु दु:खी तो दोनों ही होते हैं।
स्वर्ग में फिर सब सुखी होते हैं, परन्तु मर्तबा नम्बरवार है। हमको पुरुषार्थ करके ऊंच पद पाना है। मम्मा-बाबा को फालो करना है। इस समय श्रीमत मिलती है। तो मात-पिता को फालो करना पड़े। मात-पिता तो साकार में चाहिए। शिवबाबा को तो पुरुषार्थ करना नहीं है। मम्मा बाबा पुरुषार्थ कर 21 जन्मों का राज्य भाग्य लेते हैं। फिर जो अच्छा पुरुषार्थ करते हैं, वह गद्दी पर बैठते हैं।
8 पास विद आनर होते हैं। उनमें आना चाहिए। उनमें नहीं तो 108 में आओ। मार्जिन तो 16108 की भी है। 16108 की बहुत बड़ी माला होती है। उनको बैठ खींचते हैं। यहाँ माला जपने की बात नहीं है। बाप तो कहते हैं फालो करो। यह ब्रह्मा बूढ़ा पढ़कर पास हो नम्बरवन में जाता है।
मम्मा जवान भी नम्बरवन में जाती है। तो तुम पुरुषार्थ क्यों नहीं करते हो। ग़फलत क्यों करते हो? बाप को पत्र भी नहीं लिखते, याद भी नहीं करते हैं। प्रण भी कर जाते हैं परन्तु बाहर गये खलास। हम कह भी देते हैं – तुम बाहर जाने से भूल जायेंगे। कहते हैं बाबा हम नहीं भूलेंगे। फिर भूल जाते हैं। वन्डर है ना।
यह है बिल्कुल नई पढ़ाई जो कोई शास्त्र में नहीं है। कोई समझ नहीं सकते। अब बाबा ने दृष्टि दी है – इस अन्तिम जन्म में। बाबा सुनाते हैं – हम गीता भी पढ़ते थे। नारायण का भी पूजन करते थे। गद्दी पर भी नारायण का चित्र रखते थे (हिस्ट्री सुनाना) लक्ष्मी को कैसे मुक्त कर दिया। दुनिया वालों से बड़ा युक्ति से चलना पड़ता है। तुम भी गुप्त रीति बाबा का परिचय देते रहो कि बाप और वर्से को याद करो।
स्वर्ग के हैं देवी-देवता, इसलिए लक्ष्मी-नारायण का चित्र बनाया है। पहले त्रिमूर्ति नहीं डाला था क्योंकि ब्रह्मा को देख बिगड़ जाते हैं। परन्तु ब्रह्मा बिगर काम कैसे हो। बी.के. बाप को नहीं देखेंगे तो काम कैसे होगा? बाप कहते हैं गीता में लिखा हुआ है – मनमनाभव, मध्याजी भव। चाहे मुक्ति का वा जीवन मुक्ति का दोनों वर्सा मैं दे सकता हूँ और कोई नहीं। बहुत समझने की बातें हैं।
अमृतवेले उठकर विचार सागर मंथन करना है जरूर। दिन में भल काम करो परन्तु अमृतवेले 4 बजे से 5 बजे तक बैठकर याद करो तो बहुत सुख फील होगा। बाबा स्वीट होम से हम बच्चों को पढ़ाने आते हैं, फिर चले जाते हैं। कहते हैं मुझे याद करो तो खाद निकलेगी। जब सच्चा सोना बन जायेंगे तब पास विद आनर होंगे। अगर ऊंच पद पाना है तो पुरुषार्थ से क्या नहीं हो सकता है? बाप फिर भी कहते हैं – इस ईश्वरीय बचपन को नहीं भूलना। ऐसे बाप को घड़ी-घड़ी याद करना चाहिए। याद से तुम कंचन बनते हो। अच्छा!
“मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। ओम् शान्ति।“
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) किसी भी प्रकार की ग़फलत नहीं करनी है। एक दो को सावधान कर, बाप की याद दिलाए उन्नति को पाना है। अपने ईश्वरीय बचपन को भूलना नहीं है।
2) मात-पिता को फालो करते रहना है। माया के तूफानों से डरना नहीं है। अमृतवेले बाप की याद में बैठकर सुख का अनुभव करना है।
वरदान:- “दृढ़ता की शक्ति से सफलता प्राप्त करने वाले, प्रयोगशाली, त्रिकालदर्शी भव”
बापदादा का वरदान है-जहाँ दृढ़ता है वहाँ सफलता है। तो दृढ़ता से कोई भी गुण वा शक्ति के प्रयोग का प्रोग्राम बनाओ और पहले स्वयं में सन्तुष्टता का अनुभव करो। दृढ़ संकल्प हो कि “मुझे करना ही है”। दूसरों के अलबेलेपन का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। त्रिकालदर्शी पन की स्थिति के आसन पर बैठ-कर जैसा समय वैसी विधि से पहले स्वयं सिद्धि स्वरूप बनो, तब प्रयोगशाली आत्माओं का पावरफुल संगठन तैयार होगा और उस संगठन की किरणें बहुत कार्य करके दिखायेंगी।
स्लोगन:- “सर्व की दुआयें प्राप्त करने वाले ही सन्तुष्टमणि हैं।“ – ओम् शान्ति।
मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे।
अच्छा – ओम् शान्ति।
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नोट: यदि आप “मुरली = भगवान के बोल” को समझने में सक्षम नहीं हैं, तो कृपया अपने शहर या देश में अपने निकटतम ब्रह्मकुमारी राजयोग केंद्र पर जाएँ और परिचयात्मक “07 दिनों की कक्षा का फाउंडेशन कोर्स” (प्रतिदिन 01 घंटे के लिए आयोजित) पूरा करें।
खोज करो: “ब्रह्मा कुमारिस ईश्वरीय विश्वविद्यालय राजयोग सेंटर” मेरे आस पास.
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