9-8-2022 ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली: “बहुत-बहुत स्वीट (मीठे) बनो”

“मीठे बच्चे – स्वीट बाप आया है तुम बच्चों को इस कडुवी दुनिया से निकाल स्वीट बनाने, इसलिए बहुत-बहुत स्वीट (मीठे) बनो”

प्रश्नः– अभी तुम बच्चों को इस पुरानी दुनिया से ऩफरत क्यों आई है?

उत्तर:- क्योंकि यह दुनिया कुम्भी पाक नर्क बन गई है, इसमें सब कडुवे हैं। कडुवा पतित को कहा जाता है। सब विषय वैतरणी नदी में गोता खाते रहते हैं, इसलिए तुम्हें अब इससे ऩफरत आती है।

प्रश्नः– मनुष्यों के एक ही प्रश्न में दो भूलें हैं, वह कौन सा प्रश्न और कौन सी भूलें?

उत्तर:- मनुष्य कहते हैं मेरे मन को शान्ति कैसे हो? इसमें पहली भूल मन शान्त कैसे हो सकता – जब तक वह शरीर से अलग न हो और दूसरी भूल जबकि कहते हैं ईश्वर के सब रूप हैं, परमात्मा सर्वव्यापी है फिर शान्ति किसको चाहिए और कौन दे?

गीत:- Top 5 Brahmakumaris Songs…., बेहतरीन पाँच ब्रह्माकुमारी गीत ….by BK Asmita Didi

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“ओम् शान्ति”

तुम बच्चे जानते हो शान्तिधाम से बाप आया हुआ है और बच्चों से पूछते हैं – किस विचार में बैठे हो? तुम जानते हो बाप स्वीट होम, शान्तिधाम से आये हुए हैं – सुखधाम ले जाने के लिए। बाप कहते हैं अब तुम अपने स्वीट होम को ही याद कर रहे हो या और कुछ भी याद आता रहता है। यह दुनिया कोई स्वीट नहीं है, बहुत कड़ुवी है। कड़ुवी चीज़ दु:ख देने वाली होती है। बच्चे जानते हैं अब हम स्वीट होम जाने वाले हैं। हमारा बेहद का बाप बड़ा स्वीट है। बाकी और जो भी बाप हैं इस समय वह बहुत कड़ुवे पतित छी-छी हैं। यह तो है सभी का बेहद का बाप। अब किसकी मत पर चलना है।

दूर देश का रहवासी आया , Far away land living being has come
दूर देश का रहवासी आया , Far away land living being has come

बेहद का बाप कहते हैं – बच्चे अब अपने शान्तिधाम को याद करो फिर साथ में सुखधाम को भी याद करो। इस दु:खधाम को भूल जाओ। इनको तो बहुत कड़ा नाम दिया गया है – कुम्भी पाक नर्क, जिसमें विषय वैतरणी नदी बहती है। बाप समझाते हैं यह सारी दुनिया ही विषय वैतरणी नदी है। सब इस समय दु:ख पा रहे हैं, इसलिए इनसे ऩफरत होती है। बहुत गन्दी दुनिया है, इससे तो वैराग्य आना चाहिए। जैसे संन्यासियों को वैराग्य आता है, घरबार से। समझते हैं स्त्री नागिन है, घर में रहना गोया नर्क में रहना, गोता खाना है। ऐसा कह छोड़ जाते हैं। यूँ तो दोनों ही नर्क के द्वार हैं। उनको घर में अच्छा नहीं लगता है इसलिए जंगल में चले जाते हैं।

तुम घरबार छोड़ते नहीं हो, घर में रहते हो। ज्ञान से समझते हो। बाप बच्चों को समझाते हैं यह विषय वैतरणी नदी है। सब भ्रष्टाचारी बनते रहते हैं। अभी तुम बच्चों को शान्तिधाम ले चलेंगे। वहाँ से तुमको क्षीरसागर में भेज देंगे। सारी दुनिया से वैराग्य दिलाते हैं क्योंकि इस दुनिया में शान्ति है नहीं। सब मनुष्य मात्र शान्ति के लिए कितना माथा मारते रहते हैं। संन्यासी आदि कोई भी आयेंगे – कहेंगे मन को शान्ति चाहिए अर्थात् मुक्तिधाम में जाना चाहते हैं। प्रश्न ही कैसा पूछते हैं – मन तो शान्त हो नहीं सकता। जब तक आत्मा शरीर से अलग न हो।

एक तो कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है, हम सब ईश्वर के रूप हैं फिर यह प्रश्न क्यों? ईश्वर को शान्ति क्यों चाहिए! बाप समझाते हैं – शान्ति तो तुम्हारे गले का हार है। तुम कहते हो हमको शान्ति चाहिए। पहले तो बताओ हम कौन? आत्मा अपने स्वधर्म और निवास स्थान को भूल गई है। बाप कहते हैं तुम आत्मा शान्त स्वरूप हो। शान्ति देश की रहने वाली हो। तुम अपने स्वीट होम और स्वीट फादर को भूल गये हो। भगवान होता ही है एक। भगत हैं अनेक। भक्त तो भक्त हैं, उनको भगवान कैसे कहेंगे। भक्त तो साधना प्रार्थना करते हैं हे भगवान, परन्तु भगवान को भी जानते नहीं हैं, इसलिए दु:खी बन पड़े हैं। अभी तुम समझ गये हो कि असुल में हम शान्तिधाम के रहवासी थे फिर सुखधाम में गये फिर रावण राज्य में आये हैं।

तुम आलराउन्ड पार्ट बजाने वाले हो। पहले तुम सतयुग में थे। भारत सुखधाम था। अभी तो दु:खधाम है। तुम आत्मायें शान्तिधाम में रहती हो, बाप भी वहाँ ही रहते हैं। बाप की फिर महिमा है पतित-पावन, ज्ञान का सागर है। पावन बनाते हैं ज्ञान से। ज्ञान का वह सागर है इसलिए ही उन्हें पुकारते हैं। इससे सिद्ध है यहाँ ज्ञान नहीं है। जब ज्ञान सागर आये, उससे ज्ञान नदियाँ निकलें तब ज्ञान स्नान करें। ज्ञान सागर तो एक ही परमपिता परमात्मा को कहा जाता है। वह जब आये, बच्चे पैदा करे तब उनको ज्ञान मिले और सद्गति हो।

Earth is RAWANS LANKA, पृत्वी रावण कि लंका है।
Earth is RAWANS LANKA, पृत्वी रावण कि लंका है।

जब से रावण राज्य शुरू होता है तब से भक्ति शुरू हुई अर्थात् पुजारी बनें। अब फिर तुम पूज्य बन रहे हो। पवित्र को पूज्य और पतित को पुजारी कहा जाता है। संन्यासियों को फूल चढ़ाते हैं, माथा टेकते हैं। समझते हैं वह पावन है हम पतित हैं, बाप कहते हैं इस दुनिया में पावन कोई हो नहीं सकता। यह तो विषय वैतरणी नदी है। क्षीर सागर विष्णुपुरी को कहा जाता है, जहाँ तुम राज्य करते हो।

बाप कहते हैं बच्चे अपने को आत्मा समझो और स्वीट होम को याद करो। कर्म तो करना पड़ता है। पुरूषों को धन्धाधोरी, माताओं को घर सम्भालना पड़ता है। तुम भूल जाते हो इसलिए अमृतवेले का टाइम बहुत अच्छा है। उस समय याद करो, सबसे अच्छा समय है अमृतवेले का। जबकि दोनों फ्री हैं। यूँ तो शाम को भी समय मिलता है। परन्तु समझो उस समय कोई थके रहते हैं, अच्छा भल आराम करो। सवेरे उठकर याद करो। हम आत्माओं को बाप आये हैं ले जाने।

अभी 84 जन्मों का पार्ट पूरा हुआ। ऐसे ख्यालात करने चाहिए। तुम्हारा सबसे अच्छा कमाई का समय सवेरे है। अभी की कमाई ही सतयुग में काम आती है। अभी तुम बाप से वर्सा पाते हो। वहाँ धन की कोई तकलीफ नहीं, कोई फिकरात नहीं। बाप तुम्हारी इतनी झोली भर देते हैं जो फिर कमाई के लिए फिकर नहीं रहता है। यहाँ मनुष्यों को कमाई की कितनी फिकरात रहती है। बाबा 21 जन्मों के लिए फिकरात से छुड़ा देते हैं।

तो सवेरे-सवेरे उठकर ऐसे-ऐसे अपने से बातें करो। हम आत्मायें परमधाम की निवासी हैं, बाप के बच्चे हैं। पहले-पहले हम स्वर्ग में आते हैं। बाप से वर्सा लेते हैं। बाप कहते हैं 5 हजार वर्ष पहले तुम कितने मालामाल थे, भारत स्वर्ग था। अब तो नर्क दु:खधाम है। एक ही बाप सर्व का सद्गति दाता बनता है। एक दो को याद दिलानी चाहिए। सतयुग में सिर्फ भारत था, उसको स्वर्ग जीवनमुक्त कहा जाता है। नर्क को जीवनबंध कहा जाता है।

84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births
84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births

पहले सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राज्य था फिर वैश्य, शूद्र वंशी राज्य हुआ है। आसुरी बुद्धि होने के कारण मनुष्य एक दो को दु:ख देते हैं। हर एक लौकिक बाप भी बच्चों का सर्वेन्ट बनते हैं। विकार में जाकर बच्चे पैदा करते हैं, उन्हों की सम्भाल करते हैं, फिर उन्हों को नर्क में ढकेल देते हैं। जब वे विषय वैतरणी नदी में गोते खाने लगते हैं तो इसमें बाप खुश होते हैं। तो भोले हुए ना।

यह पारलौकिक बाप भी भोला है, बच्चों का सर्वेन्ट है। वह लौकिक बाप बच्चों को नर्क में डाल देते, यह शान्तिधाम, स्वर्ग में ले जाते हैं। मेहनत तो करते हैं ना। कितना भोला है। अपना परमधाम छोड़कर आये हैं। देखते हैं आत्माओं की कितनी दुर्गति हो गई है। मेरे को गाली ही देते रहते, मुझे जानते नहीं। मेरे रथ को भी गाली दे कितने झूठे कलंक लगा दिये हैं। तुम्हारे पर भी कलंक लगाते हैं। श्रीकृष्ण पर भी कलंक लगाते हैं। परन्तु कृष्ण जब गोरा है तब कोई कलंक लग नहीं सकता, जब सांवरा बनता है तब कलंक लगता है। जो गोरा था वो ही सांवरा बना है इसलिए कलंक लगता है। गोरे पर तो कलंक लग न सके। आत्मा पवित्र से जब अपवित्र बनती है तब गाली खाती है। यह ड्रामा बना हुआ है।

मनुष्य बिचारे कुछ समझ नहीं सकते हैं। बहुत मूँझते हैं – पता नहीं, यह किस प्रकार का ज्ञान है। शास्त्रों में तो यह है नहीं। यह भूल गये हैं – शिव शक्ति भारत माताओं की सेना ने क्या किया था। जगत अम्बा को शिव शक्ति कहते हैं ना! उनके मन्दिर भी बने हुए हैं। देलवाड़ा मन्दिर भी है। दिल लेने वाला तो एक शिवबाबा ही हुआ ना। ब्रह्मा भी है फिर जगत अम्बा और तुम कुमारियां भी हो। महारथी भी हैं।

हूबहू तुम प्रैक्टिकल में हो। वह तुम्हारा जड़ यादगार कायम है। यह जड़ यादगार खत्म हो जायेंगे फिर तुम सतयुग में होंगे। वहाँ यह यादगार आदि होते नहीं। पाँच हजार वर्ष पहले भी ऐसे बैठे थे, यादगार बना था। फिर सतयुग त्रेता में राज्य किया। फिर भक्ति मार्ग में पूजा के लिए यह यादगार बनते हैं। ब्रह्मा विष्णु शंकर को भी तुम जान गये हो। विष्णु सो ब्रह्मा, ब्रह्मा सो विष्णु – 84 जन्म लगते हैं।

Brahma Baba, Mamma, ब्रह्मा बाबा , माम्मा
Brahma Baba, Mamma, ब्रह्मा बाबा , माम्मा

अभी फिर तुम पुरूषार्थ करते हो, फालो मम्मा बाबा को करना चाहिए। जितना पुरूषार्थ करेंगे उतना गोरा बनेंगे। पतित से पावन बनने का पुरूषार्थ कितना सहज बाप सिखलाते हैं। बाप को और स्वीट होम को याद करते रहेंगे तो तुम स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे। यह टेव (आदत) डालनी है, सवेरे उठ याद करने की। फिर जब पक्के हो जायेंगे तो चलते फिरते याद रहेगी। हमको तो स्वीट होम और स्वीट राजधानी को ही याद करना है। पहले हम सतोप्रधान बनेंगे, फिर सतो रजो तमो में आयेंगे, इसमें कोई संशय उठ नहीं सकता। मूँझने की बात ही नहीं।

पवित्र रहना ही है। देवताओं का भोजन भी कितना पवित्र होता है। तो हमको भी बहुत परहेज में रहना चाहिए। इसमें पूछने की बात भी नहीं रहती। बुद्धि समझती है – एक तो विकार सबसे खराब है। दूसरा-शराब, कबाब नहीं पीना है। बाकी लहसुन प्याज़ आदि की और पतित के भोजन की दिक्कत पड़ती है। बाप समझाते हैं पवित्र भोजन तो कहीं मिलेगा नहीं, सिवाए ब्राह्मणों के। बाप की याद में रहना पड़े। जितना तुम याद में रहेंगे तो पावन बन जायेंगे। बुद्धि से समझना होता है। हम अपने को किस युक्ति से बचाते रहें। बुद्धि से काम लेना है। गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है, इसलिए लौकिक से भी रिश्ता रखना है। उन्हों का भी कल्याण करना है। उन्हों को भी यह बातें सुनानी हैं। बाप कहते हैं पवित्र बनो, नहीं तो सजायें बहुत खायेंगे और पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। माला पास विद ऑनर की बनी हुई है। अभी सबके कयामत का समय है, सबके पापों का हिसाब-किताब चुक्तू होना है।

बाबा ने समझाया है याद से ही विकर्म भस्म होंगे, इसमें ही मेहनत है। ज्ञान तो बड़ा सहज है। सारा ड्रामा और झाड़ बुद्धि में आ जाता है। बाकी स्वीट बाप, स्वीट राजधानी और स्वीट होम को याद करना है। अभी नाटक पूरा होता है, घर जाना है। पुराना शरीर छोड़ सबको वापिस जाना है। यह पक्का रखना है। ऐसे याद करते-करते शरीर छूट जायेगा और तुम आत्मायें चली जायेंगी। बहुत सहज है।

अभी तुम सम्मुख सुनते हो और बच्चे टेप से सुनेंगे। एक दिन टेलीवीज़न पर भी यह ज्ञान सुनेंगे वा देखेंगे जरूर। सब कुछ होगा। पिछाड़ी वालों के लिए तो और ही सहज हो जायेगा। हिम्मते बच्चे मददे बाप। यह भी प्रबन्ध हो जायेगा। सर्विस करने वाले भी अच्छे होंगे। तो बच्चों की उन्नति के लिए यह भी सब प्रबन्ध अच्छा हो जायेगा। वह भी जिसको चाहे ले सकते हैं। एक बाप को ही याद करना है।

अमृतवेला , Amritvela
अमृतवेला , Amritvela

मुसलमान लोग भी सवेरे-सवेरे फेरी पहनते हैं और सबको जगाते हैं। उठकर अल्लाह को याद करो। यह समय सोने का नहीं है। वास्तव में यह अभी की बात है। अल्लाह को याद करो क्योंकि तुमको बहिश्त की बादशाही मिलती है। बहिश्त को फूलों का बगीचा कहा जाता है। वह तो ऐसे ही गाते हैं। तुम तो प्रैक्टिकल में बाप को याद करने से देवता बन रहे हो। यह सवेरे उठने का अभ्यास अच्छा है। सवेरे का वायुमण्डल बहुत अच्छा होता है। 12 बजे के बाद सवेरा शुरू होता है। प्रभात का टाइम 2-3 बजे को कहा जाता है। सवेरे उठ शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना चाहिए। 

“अच्छा! मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) बाप की याद में रह पवित्र, शुद्ध भोजन खाना है। अशुद्धि से बहुत-बहुत परहेज रखनी है। मम्मा बाबा को फालो कर पवित्र बनने का पुरूषार्थ करना है।

2) सवेरे-सवेरे उठ स्वीट बाप को और स्वीट राजधानी को याद करना है। इस कयामत के समय में बाप की याद से ही सब हिसाब-किताब चुक्तू करने हैं।

वरदान:-     “अपनी निश्चिंत स्थिति द्वारा श्रेष्ठ टचिंग के आधार पर कार्य करने वाले सफलतामूर्त भव”!

कोई भी कार्य करते सदा स्मृति रहे कि “बड़ा बाबा बैठा है” तो स्थिति सदा निश्चिंत रहेगी। इस निश्चिंत स्थिति में रहना भी सबसे बड़ी बादशाही है। आजकल सब फिक्र के बादशाह हैं और आप बेफिक्र बादशाह हो। जो फिक्र करने वाले होते हैं उन्हें कभी भी सफलता नहीं मिलती क्योंकि वह फिक्र में ही समय और शक्ति को व्यर्थ गंवा देते हैं। जिस काम के लिए फिक्र करते वह काम बिगाड़ देते। लेकिन आप निश्चिंत रहते हो इसलिए समय पर श्रेष्ठ टचिंग होती है और सेवाओं में सफलता मिल जाती है।

स्लोगन:-    “ज्ञान स्वरूप आत्मा वह है जिसका हर संकल्प, हर सेकण्ड समर्थ है। – ओम् शान्ति।
मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे ^ “Hindi Murli

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे ^ “Hindi Murli

अच्छा – ओम् शान्ति।

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