“परमात्मा के बारे में अनेक मनुष्यों की मत का आखरीन फैंसला”
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य –
अभी तो यह सारी दुनिया जानती है कि परमात्मा एक है, उस ही परमात्मा को कोई शक्ति मानते हैं, कोई कुदरत कहते हैं, मतलब तो कोई न कोई रूप में जरुर मानते हैं। तो जिस वस्तु को मानते हैं अवश्य वह कोई वस्तु होगी तब तो उनके ऊपर नाम पड़े हैं परन्तु उस एक वस्तु के बारे में इस दुनिया में जितने भी मनुष्य हैं उतनी मतें हैं, परन्तु चीज़ फिर भी एक ही है।
उसमें मुख्य चार मतें सुनाते हैं – कोई कहता है ईश्वर सर्वत्र है, कोई कहता है, ब्रह्म ही सर्वत्र है। कोई कहता ईश्वर सत्यम् माया मिथ्यम्, कोई कहता ईश्वर है ही नहीं, कुदरत ही कुदरत है। वो फिर ईश्वर को नहीं मानते। अब यह हैं इतनी मतें। वो तो समझते हैं जगत् प्रकृति है, बाकी कुछ है नहीं।
अब देखो जगत् को मानते हैं परन्तु जिस परमात्मा ने जगत् रचा, उस जगत् के मालिक को नहीं मानते! दुनिया में जितने अनेक मनुष्य हैं, उन्हों की इतनी मतें, आखरीन भी इन सभी मतों का फैंसला स्वयं परमात्मा आकर करता है।
“इस सारे जगत् का निर्णय परमात्मा आकर करता है अथवा जो सर्वोत्तम शक्तिवान होगा, वही अपनी रचना का निर्णय विस्तारपूर्वक समझायेगा, वही हमें रचता का भी परिचय देते हैं और फिर अपनी रचना का भी परिचय देते हैं।“
अच्छा – ओम् शान्ति।
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SOURSE: 26-4-2022 प्रात: मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन.