“दुनिया में अनेक प्रकारों की मत से परमात्मा की श्रेष्ठ मत”
– : मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य :–
इस दुनिया में तीन प्रकार की मत है एक है मनमत, दूसरी है गुरू मत, तीसरी है शास्त्र मत। अब विचार की बात है मन मत, गुरू मत अथवा शास्त्र मत, सभी आत्माओं की मत ठहरी न देवता मत ठहरी, न परमात्मा की मत ठहरी। भल कोई देवता की मत मिलें परन्तु वो मनुष्य आत्मा की मत हुई
परन्तु देवतायें तो सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण हैं, उन्हें गुरू मत, शास्त्र मत की जरूरत नहीं है। उन्हें गुरू की भी जरुरत नहीं थी। गुरू किया जाता है सद्गति के लिये। तो जो अधोगति में हैं वो गुरू कर सकते हैं परन्तु सतयुग त्रेता में अधोगति नहीं है ना, तो वहाँ गुरू करने की जरुरत नहीं है।
वास्तव में सच्चा गुरू एक परमात्मा है जो सर्व आत्माओं को सद्गति देने इस ड्रामा के अन्त में आता है। बाकी तो सभी नाम मात्र गुरू हैं क्योंकि कोई भी मनुष्य आत्मा मुक्ति और जीवनमुक्ति का रास्ता बता नहीं सकती। देवतायें भी मनुष्य से देवता बने हैं, बाकी वे कोई तीसरी ऑख वाले या चार भुजाधारी नहीं थे।
लोग तो समझते हैं कि देवतायें कोई मनुष्य से भिन्न होंगे, हाँ भिन्नता यह है कि वो 16 कला सम्पूर्ण होने के कारण बहुत पवित्र हैं, उन्हों के संस्कार शुद्ध थे, बाकी मनुष्य तो मनुष्य थे। मनुष्य में जब दैवी-गुण हैं तो उन्हें देवता कहते हैं। अब यह मत हमको परमात्मा द्वारा मिल रही है, हम मनुष्य मत या गुरू मत पर नहीं हैं। हम चल रहे हैं परमात्मा की मत पर, सभी आत्माओं से परमात्मा की जरूर श्रेष्ठ मत होगी।
अच्छा – ओम् शान्ति।
[SOURSE: 1-2-2022 प्रात: मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन.]
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