21-12-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “तुम सभी मनुष्य मात्र के कल्याणकारी हो”
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शिव भगवानुवाच : “मीठे बच्चे – तुम सभी मनुष्य मात्र के कल्याणकारी हो, तुम्हें बहुतों का कल्याण करना है, अशरीरी बनने के अभ्यास के साथ-साथ सर्विस भी जरूर करनी है”
प्रश्नः किस एक बात में बाप भी ड्रामा की भावी कह चुप हो जाते हैं?
उत्तर:- बच्चे, जो बहुत समय तक बाप की पालना ले फिर माया के वश हो जाते हैं। शादी कर कहाँ का कहाँ चले जाते हैं। आश्चर्यवत भागन्ती हो जाते हैं तो बाप ड्रामा की भावी कह चुप हो जाते हैं। बाप जानते हैं यह भी यज्ञ में विघ्न पड़ते हैं। बाप को ओना रहता है बच्चे, कहाँ किसी के नाम–रूप में नहीं फंस जायें। माया बहुत विघ्न डालती है इसलिए बाबा राय देते हैं बच्चे, तुम्हें माया से डरना नहीं है। बाप की याद से विजयी बनना है।
गीत:- “इस पाप की दुनिया से………..!” , अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.
-: ज्ञान के सागर और पतित–पावन निराकार शिव भगवानुवाच :-
अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रति – “मुरली”( यह अपने सब बच्चों के लिए “स्वयं भगवान द्वारा अपने हाथो से लिखे पत्र हैं।”)
“ओम् शान्ति”
शिव भगवानुवाच : मीठे–मीठे बच्चे जानते हैं कि हम बाप और दादा के सामने बैठे हैं। हर एक बात नई है और याद करना है श्रीमत पर एक ही बाप को। बाप श्रीमत देते हैं दादा के तन द्वारा। घड़ी–घड़ी बच्चों को सावधानी मिलती है कि मनमनाभव अर्थात् बाप को याद करो। इस दादा को याद नहीं करना है। दादा की आत्मा भी बाप को याद करती है तो तुमको भी याद करना है।
तुम आत्मा अशरीरी हो, मैं भी अशरीरी हूँ सिर्फ तुमको इस तन द्वारा पढ़ा रहा हूँ। यह कोई सर्वशक्तिमान नहीं है। सर्वशक्तिमान एक ही बाप है। भल तुम विश्व के मालिक बनते हो परन्तु तुमको सर्वशक्तिमान नहीं कहेंगे। तुम रावण पर जीत पाकर फिर से अपना राज्य पद लेते हो। सर्वशक्तिमान द्वारा बाप का फरमान है कि मुझ अपने बाप को याद करो। तुम झाड़ के आदि–मध्य–अन्त का राज़ समझ गये हो। अभी तुम कितने समझदार बने हो अर्थात् बुद्धि में नॉलेज है।
इस नॉलेज से तुमको बहुत ऊंच पद मिलता है। नर से नारायण बनते हो। यह राजयोग की पढ़ाई है। कल्प पहले भी तुमने यह पढ़ाई पढ़ी है। एम आब्जेक्ट सामने खड़ी है फिर जो जितना पुरुषार्थ करे। पुरुषार्थ बहुत करना चाहिए और है भी बहुत सहज। अपने घर को जानना, यह कोई मुश्किल नहीं है। हम आत्मा अशरीरी हैं। शान्तिधाम में रहते हैं।
वहाँ मन की शान्ति आदि नहीं कहेंगे, मन की शान्ति, वास्तव में यह अक्षर कहना भी रांग है। मन तो घोड़ा है। जब तक शरीर है आत्मा के साथ, तो मन शान्त हो नहीं हो सकता। कर्म तो करना ही है। अल्पकाल की शान्ति तो रात्रि को नींद में होती है। आत्मा कर्मेन्द्रियों से काम करते–करते थक जाती है तो अशरीरी हो जाती है। आत्मा कहती है मुझे नींद आती है। मैं थक गया हूँ। तो आत्मा अशरीरी हो जाती है। अभी बाप को याद करना है तो विकर्म विनाश होंगे। सो जाने से कोई विकर्म विनाश नहीं होंगे।
यह तो बाप को याद करने का पुरुषार्थ करना है, जो पुरुषार्थ बहुत जरूरी है। घड़ी–घड़ी बाप कहते हैं मुझे याद करो। जितना जो सर्विस करेंगे, अपनी ही प्रजा बनायेंगे। ढेर की ढेर प्रजा बनानी है, बहुतों का कल्याणकारी बनना है। तुम मनुष्य मात्र के कल्याणकारी हो। रावण राज्य में कोई भी किसका कल्याण नहीं करते। मनुष्य जब दान–पुण्य करते हैं, समझते हैं हम अच्छा कर्म करते हैं।
जैसे तुम कहते हो इस लड़ाई से वैकुण्ठ के द्वार खुलते हैं। यह बहुत अच्छी लड़ाई है। तुम ब्राह्मण अभी ज्ञानी तू आत्मा बने हो। जिनमें 5 विकार प्रवेश हैं वह देवता कैसे बन सकेंगे। नर से नारायण बनने के लिए अच्छी मेहनत चाहिए। बेहद का पुरुषार्थ करना है। ऐसा ऊंचा पद बाप के सिवाए कोई प्राप्त करा नहीं सकता। कोई राजयोग सिखला न सके।
तुम लक्ष्मी–नारायण की बायोग्राफी को भी जानते हो। उन्होंने यह राज्य कैसे लिया? कहाँ से लिया? किसको जीता? तुम सबको समझाते हो – कि अभी राजयोग सीखकर हम लक्ष्मी–नारायण जैसा बन रहे हैं। स्वयं भगवान नर से नारायण बनने की पढ़ाई पढ़ाते हैं। तो तुम बच्चों को बहुत नशा होना चाहिए।
बाप ने समझाया है – यह ब्राह्मण धर्म परमपिता परमात्मा ही स्थापन करते हैं। अब ब्राह्मण धर्म कहाँ होता है? क्या सतयुग में? नहीं। जरूर यहाँ होगा। प्रजापिता भी यहाँ ठहरा। बाप ने ब्राह्मण धर्म स्थापन किया और ब्रह्मा मुख वंशावली रची। खुद कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त के साधारण मनुष्य तन में प्रवेश करता हूँ। वह अपने जन्मों को नहीं जानते। कहते हैं ब्रह्मा को यहाँ क्यों रखा है? अरे प्रजापिता तो यहाँ होना चाहिए। समझते हैं सूक्ष्मवतनवासी देवता यहाँ कैसे हो सकता है! प्रजापिता ब्रह्मा के 84 जन्मों का राज़ बाप बैठ समझाते हैं। यह है अन्तिम जन्म, इसमें ही आना पड़ेगा। जो आदि में है सो अन्त में होगा। यह सब राज़ बाप ही समझाते हैं।
यह चित्र भी शिवबाबा ने दिव्य दृष्टि से बनवाये हैं। बाबा ने डायरेक्शन दिया कि कल्प 5 हजार वर्ष का है – यह सिद्ध कर बताना है। यह स्वर्ग–नर्क के चित्र बाबा ने बनवाये हैं। गीता में यह थोड़ेही लिखा हुआ है कि परमपिता परमात्मा ने पढ़ाया है। देखो समझाने में कितनी मेहनत लगती है। दिन–प्रतिदिन समझानी मिलती रहती है। जो कल्प पहले जिस समय समझाया, उस समय अभी भी समझाते हैं। मुझ आत्मा में जो पार्ट नूँधा हुआ है, वह रिपीट होता है।
यह तो तुम समझते हो कि यह पतित दुनिया है। सबका अन्तिम जन्म है। अभी नाटक पूरा होता है। नहीं तो सतयुग से दैवी धर्म कैसे स्थापन होगा। सतयुग में है एक अद्वैत देवी–देवता धर्म। इस समय तुम्हारा है ब्राह्मण धर्म। विराट रूप का राज़ भी समझाया है। ब्राह्मण माना चोटी, फिर ब्राह्मण ही देवता बनते हैं। मनुष्यों को यह पता ही नहीं है कि शिवबाबा ब्राह्मण धर्म रचते हैं। अभी तुम ट्रांसफर होते हो। शूद्र से ब्राह्मण, नीचे से आसमान में चले जाते हो। आत्माओं को अब घर जाना है।
मनुष्य देवियों के मन्दिर में जाते हैं तो यह नहीं जानते हैं कि जगत अम्बा कौन है? वह भी ब्राह्मणी है। तुम भी ब्राह्मणियाँ हो। जगत अम्बा और जगत पिता भी है, जो जिसका पुजारी होगा उनका मन्दिर बनायेगा। नॉलेज कुछ भी नहीं है कि जगत अम्बा कौन है। वह है ज्ञान ज्ञानेश्वरी, जो फिर राज–राजेश्वरी बनती है। देवियों की बहुत पूजा होती है।
सतयुग में हैं लक्ष्मी–नारायण, त्रेता में हैं राम–सीता। बाकी सब इस समय के चित्र हैं। अनेक चित्र हैं, अनेक मन्दिर बनाये हैं। तुम जानते हो ब्रह्मा सरस्वती ब्राह्मण और ब्राह्मणियाँ हैं। लक्ष्मी को ब्राह्मणी नहीं कहेंगे, वह देवता है। जब ब्राह्मणी है तो सब मनोकामनायें पूर्ण करती है – 21 जन्मों के लिए। जब लक्ष्मी बनती है तो ग्रेड कम हो जाता है। अभी तुम ईश्वर की सन्तान हो। तुम्हारी ग्रेड ऊंची है। इन बातों को कोई मनुष्य नहीं समझ सकते।
तुम हो ब्राह्मण कुल भूषण। अभी तुम ईश्वर के बने हो फिर देवता कुल में जायेंगे। यह संगमयुग कल्याणकारी है। बाप भारत को स्वर्ग बनाते हैं। भारत ही प्राचीन हेविन था, परन्तु किसकी बुद्धि में नहीं बैठता। भारतवासियों को मालूम पड़े तो खुश हो जायें कि हम स्वर्ग के मालिक थे। कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्ग गया। हेविनली गॉड फादर ही हेविन बनाते हैं।
मूलवतन तो है ही। उसके लिए स्थापना अक्षर नहीं आयेगा। स्थापना धर्म की होती है। वह आत्माओं का घर है जो इस समय खाली होता है, फिर नम्बरवार सब जायेंगे। यह बच्चों की बुद्धि में बिठाना है औरों को समझाने लिए। धर्म स्थापन अर्थ जो भी आत्मायें आती हैं वह फिर सतो रजो तमो में आती हैं। तुमको अब ऊपर जाना है। तुम्हारी चढ़ती कला है।
तुम रूहानी ब्राह्मण मुखवंशावली हो। वह हैं कुख वंशावली, जिस्मानी ब्राह्मण। वह जिस्मानी तीर्थ कराते हैं, कथा सुनाते हैं। तुम ब्राह्मण सृष्टि के आदि–मध्य–अन्त का राज़ समझाने वाले हो। जिस्मानी ब्राह्मण भी यहाँ आते हैं – उन्हों को जब मालूम पड़ता है कि सच्चे ब्राह्मण बरोबर यह हैं तब समझते हैं हम बरोबर झूठी कथायें सुनाते हैं। उन्हों के कच्छ में है कुरम, तुम्हारी बुद्धि में है नॉलेज। वह शास्त्र पढ़कर सुनाते हैं और तुम्हारी बुद्धि में नॉलेज है, जैसे बाबा की बुद्धि में है।
बाबा सत, चित, आनन्द स्वरूप, बीजरूप है और है भी निराकार। तुमको भी बुद्धि में नॉलेज धारण करनी है। नॉलेज डिफीकल्ट नहीं है, सिर्फ ध्यान देना है। ऐसे भी नहीं कोई घर–बार छोड़ना है। यह तो कारण बन जाते हैं। समझो बच्ची शादी करने नहीं चाहती है, बाप मारते हैं। परन्तु छोटी है भाग नहीं सकती। बालिग है तो आकर शरण लेती है। गाते हैं शरण पड़ी मैं तेरे क्योंकि रावण राज्य में बहुत दु:खी हैं। फिर बाप से वर्सा पाते हैं। समझो किसको पति बहुत मारता है, समझती है इससे जाकर बाबा की शरण लेवें। परन्तु घरबार छोड़ना मासी का घर नहीं है। मेहनत लगती है।
संन्यासी भल संन्यास करते हैं परन्तु मित्र–सम्बन्धी कोई भूलते नहीं हैं। कई लौट भी आते हैं, मेहनत है। ब्रह्म तत्व से योग जल्दी नहीं लगता। यहाँ तुम जानते हो पुरानी दुनिया और पुराने सम्बन्ध हैं। देह सहित सब कुछ छोड़ना है, इसलिए तुमको इस पुरानी दुनिया से वैराग्य आता है। पुराने शरीर से भी तुमको वैराग्य है। यह है बेहद का वैराग्य। उन्हों का है हद का रजोगुणी वैराग्य। यह है बेहद का सतोप्रधान वैराग्य। दुनिया को नहीं छोड़ते हैं। तुम पुरुषार्थ कर रहे हो पुरानी दुनिया से नई दुनिया में जाने लिए। वह थोड़ेही ऐसे समझते हैं कि नई दुनिया में जाकर सुख भोगना है। यह सुख तुम्हारे लिए है। उन्हों का है रजोप्रधान संन्यास। तुम्हारा है सतोप्रधान संन्यास।
बच्चों को सतोप्रधान बनना है। योग से खाद भस्म हो जायेगी इसलिए इसको योग अग्नि कहा जाता है। याद अग्नि यह अक्षर शोभता नहीं है। योग अग्नि कहा जाता है, जिससे विकर्म भस्म होंगे। है बहुत सहज बात। परन्तु घड़ी–घड़ी कहते हैं बाबा हम भूल जाते हैं। बाप कहते हैं – बच्चे देही–अभिमानी बनो। सतयुग से त्रेता तक तुम सोल कान्सेस रहते हो। तुम आधा–कल्प सोल कान्सेस, आधाकल्प बॉडी कान्सेस बने हो। तो अब सोलकान्सेस बनने में मेहनत लगती है।
सतयुग में समझते हैं हम एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। सर्प का मिसाल…. यह दृष्टान्त तुम्हारे लिए है। संन्यासी ज्योति ज्योत में समाने चाहते हैं। वह यह नहीं जानते हैं कि हमको फिर आकर नया चोला लेना है। तुम जानते हो यह बूढ़ा शरीर छोड़ जाकर नया लेंगे। पुराने कपड़े को छोड़ने का दिल होता है। कछुए का मिसाल भी तुम्हारे लिए है। कर्म करते बाप को याद करते रहो। बाप ही सद्गति दाता है। सद्गति दाता एक शिवबाबा दूसरा न कोई।
तुम सब आत्मायें शिवबाबा के बच्चे फिर प्रजापिता ब्रह्मा की भी सन्तान हो। पहले हैं ब्राह्मण फिर झाड़ वृद्धि को पाता है। यह वैरायटी धर्मों का झाड़ है। पहले देवी–देवता धर्म फिर इस्लामी, बौद्धी फिर वृद्धि होती रहती है। टाल–टालियाँ निकलती रहती हैं। जब नये निकलते हैं तो उनकी महिमा होती है। पीछे ताकत कम होती जाती है। तुम हो बहुत बड़ी ताकत वाले, जो विश्व के मालिक बनते हो।
वहाँ कोई मिनिस्टर आदि नहीं होते हैं। राजा का हुक्म चलता है। द्वापर से वजीर होते हैं। अब तो राजा–रानी हैं नहीं। यह भी ड्रामा बना बनाया है। भारत स्वर्ग था, अब नर्क है। नर्क भी पहले सतोप्रधान फिर अभी नर्क भी तमोप्रधान है, जिसको रौरव नर्क कहा जाता है। बाप कहते हैं – मुझे कितनी मेहनत करनी पड़ती है। कितना ओना रहता है, कहाँ कोई बच्चियां गुण्डों के हाथ में न आ जायें। दुनिया बहुत गन्दी है।
सेन्टर पर गन्दे लोग आ जाते हैं। नाम रूप में फंस पड़ते हैं। यज्ञ में अनेक प्रकार के विघ्न भी पड़ते हैं। माया भी विघ्न डालती है। फिर बहुत घुटका खाते हैं। फिर भी बाप को याद करना पड़े। युद्ध के मैदान में खड़े होकर लड़ना है। डरना नहीं है। फारकती बहुत दे देते हैं। कितने वर्ष रह पालना ली, फिर शादी कर कहाँ न कहाँ चले गये। आश्चर्यवत भागन्ती हो जाते फिर भी ड्रामा की भावी कह चुप हो जाते हैं। सर्विस में रहने वालों को खुशी बहुत जास्ती रहती है। अच्छा!
“मीठे–मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात–पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। ओम् शान्ति।“
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) बाप की शरण में आने के लिए बुद्धि से बेहद का संन्यास करना है। पुरानी दुनिया और देह को भूल आत्म–अभिमानी रहने की मेहनत करनी है।
2) हम ब्राह्मण सर्व की मनोकामनायें पूर्ण करने वाले हैं – इस नशे में रहना है।
वरदान:- “अपनी श्रेष्ठ दृष्टि, वृत्ति, कृति से सेवा करने वाले निरन्तर सेवाधारी भव”
जैसे यह शरीर श्वांस के बिना नहीं रह सकता ऐसे ब्राह्मण जीवन का श्वांस है सेवा। जैसे श्वांस न चलने पर मूर्छित हो जाते हैं ऐसे अगर ब्राह्मण आत्मा सेवा में बिजी नहीं तो मूर्छित हो जाती है इसलिए हर समय अपनी श्रेष्ठ दृष्टि से, वृत्ति से, कृति से सेवा करते रहो। वाणी से सेवा का चांस नहीं मिलता तो मन्सा सेवा करो। जब सब प्रकार की सेवा करेंगे तब फुल मार्क्स ले सकेंगे।
स्लोगन:- “साक्षीपन की स्थिति का तख्त ही यथार्थ निर्णय का तख्त है।“ – ओम् शान्ति।
मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे।
अच्छा – ओम् शान्ति।
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नोट: यदि आप “मुरली = भगवान के बोल“ को समझने में सक्षम नहीं हैं, तो कृपया अपने शहर या देश में अपने निकटतम ब्रह्मकुमारी राजयोग केंद्र पर जाएँ और परिचयात्मक “07 दिनों की कक्षा का फाउंडेशन कोर्स” (प्रतिदिन 01 घंटे के लिए आयोजित) पूरा करें।
खोज करो: “ब्रह्मा कुमारिस ईश्वरीय विश्वविद्यालय राजयोग सेंटर” मेरे आस पास.
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