“तुम मात पिता हम बालक तेरे… अब यह महिमा किसके लिये गाई हुई है?”
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य:- “तुम मात पिता हम बालक तेरे… अब यह महिमा किसके लिये गाई हुई है?”
तुम मात पिता हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा से सुख घनेरे… अब यह महिमा किसके लिये गाई हुई है? अवश्य पर–मात्मा के लिये गायन है क्योंकि परमात्मा खुद माता पिता रूप में आए इस सृष्टि को अपार सुख देता है। जरूर परमात्मा ने कब सुख की सृष्टि बनाई है तभी तो उनको माता पिता कहकर बुलाते हैं।
परन्तु मनुष्यों को यह पता ही नहीं कि सुख क्या चीज़ है? जब इस सृष्टि पर अपार सुख थे तब सृष्टि पर शान्ति थी, परन्तु अब वो सुख नहीं हैं। अब मनुष्य को यह चाहना उठती अवश्य है कि वो सुख हमें चाहिए, फिर कोई धन पदार्थ मांगते हैं, कोई बच्चे मांगते हैं, कोई तो फिर ऐसे भी मांगते हैं कि हम पतिव्रता नारी बनें। हर एक की चाहना तो सुख की ही रहती है ना।
तो परमात्मा भी कोई समय उन्हों की आश अवश्य पूर्ण करेंगे। तो सतयुग के समय जब सृष्टि पर स्वर्ग है तो वहाँ सदा सुख है, जहाँ स्त्री कभी विधवा नहीं बनती, तो वो आश सतयुग में पूर्ण होती है, जहाँ अपार सुख है। बाकी तो इस समय है ही कलियुग। इस समय तो मनुष्य दु:ख ही दु:ख भोगते हैं। बाकी जब मनुष्य अति दु:ख भोगते हैं तो कह देते हैं कि प्रभु का भाना मीठा करके भोगना है।
परन्तु जब स्वयं परमात्मा आकर हमारे सारे कर्मों का खाता चुक्तू करता है, तब ही हम कहेंगे तुम माता पिता..
अच्छा। – ओम् शान्ति।
स्रोत : 5-11-2022 प्रात: मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन.
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