18-11-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “तुमने जीते जी बेहद के बाप की गोद ली है उनकी सन्तान बने हो तो श्रीमत पर जरूर चलना है”
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शिव भगवानुवाच : “मीठे बच्चे – तुमने जीते जी बेहद के बाप की गोद ली है उनकी सन्तान बने हो तो श्रीमत पर जरूर चलना है, हर डायरेक्शन अमल में लाना है”
प्रश्नः– सृष्टि की वानप्रस्थ अवस्था कब से शुरू होती है और क्यों?
उत्तर:- जब शिवबाबा इस ब्रह्मा तन में प्रवेश करते हैं तब से सारी सृष्टि की वानप्रस्थ अवस्था शुरू होती है क्योंकि बाप सबको वापिस ले जाने के लिए आये हैं। इस समय छोटे बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। सबको मीठे घर मुक्तिधाम वापस जाना है फिर जीवनमुक्ति में आना है। वैसे भी बाप जब इस ब्रह्मा तन में प्रवेश करते हैं तो इनकी आयु 60 वर्ष की होती है। इनकी भी वानप्रस्थ अवस्था होती है।
गीत:- “ मरना तेरी गली में………………….”, अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.
-: ज्ञान के सागर और पतित–पावन निराकार शिव भगवानुवाच :-
अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रति – “मुरली”( यह अपने सब बच्चों के लिए “स्वयं भगवान द्वारा अपने हाथो से लिखे पत्र हैं।”)
“ओम् शान्ति”
शिव भगवानुवाच : यह किसकी गली में आकर मरना होता है? मनुष्य चाहते हैं कि हम मुक्तिधाम में जायें। परमपिता परमात्मा, शिवबाबा की विजय माला में पिरो जाएं। बच्चे जानते हैं जो भी मनुष्य मात्र की आत्मायें हैं वह बाप के गले का हार जरूर हैं। जैसे लौकिक बाप की रचना, लौकिक बाप के गले का हार है। बच्चे बाप को, बाप बच्चे को याद करते हैं। वैसे वास्तव में जो भी आत्मायें हैं वह सब याद करती हैं परमपिता परमात्मा बाप को। वह है हद का बाप, यह है बेहद का बाप।
हर एक मनुष्य चाहते हैं – हम मुक्ति प्राप्त करें क्योंकि निराकार के गले का हार अर्थात् मुक्ति और विष्णु के गले का हार अर्थात् जीवनमुक्ति। बाप मुक्ति और जीवनमुक्ति देते हैं। बेहद के बाप के बच्चे बनेंगे तो उनके गले का हार होंगे। लौकिक माँ बाप के गले का हार हैं बच्चे। वह खुद माँ बाप भी किसी के बच्चे होते हैं। गाते हैं तुम मात–पिता.. जब हम तुम्हारे गले का हार बनेंगे तब हम सदा सुखी होंगे। बेहद के बाप को याद करते हैं परन्तु उनके गले का हार कैसे बनेंगे, वह आश रहती है।
सो तो जब त्रिमूर्ति शिवबाबा आये, आकर तीनों को रचे – ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को, तब ब्रह्मा द्वारा बेहद बाप के गले का हार बन सकें। पहले लौकिक माँ बाप के गले का हार हैं। उनसे जीते जी मरकर पारलौकिक बाप का बनें तब वर्सा मिले। जैसे कोई साहूकार, गरीब के बच्चे को एडाप्ट करते हैं तो आकर साहूकार की गोद लेते हैं – जीते जी। वह गरीब भी जीते तो हैं ना। दोनों याद रहते हैं।
तुमको भी लौकिक और पारलौकिक दोनों सम्बन्ध याद हैं। दोनों से मिलन होता है। तुमने पारलौकिक माँ बाप की गोद ली है, उनसे सुख घनेरे लेने लिए। वह हुई हद की गोद, यह है बेहद की गोद। जीते जी गोद ली है। जानते हो इनकी गोद लेने से हम देवी–देवता कुल में सुख घनेरे पायेंगे। तो जिस मात–पिता की सन्तान बने हो उनको जरूर याद करना पड़े। श्रीमत तो गाई हुई है ना। अब तुम प्रैक्टिकल उनकी मत पर चल रहे हो।
ऐसे भी नहीं झट से सब एडाप्ट हो जाते हैं। नहीं। आहिस्ते–आहिस्ते बनते हैं। अब देवी–देवता धर्म की स्थापना हो रही है। झाड़ धीरे–धीरे वृद्धि को पाता है। क्रिश्चियन का भी पहले क्राइस्ट आता है। फिर 10-20-50 बढ़ते जाते हैं। यह झाड़ यहाँ सामने बढ़ता है। क्राइस्ट चला जाता है फिर भी आकर अन्त में शामिल होता है।
यह तो बेहद का बाप है। बहुतों को शिवबाबा के गले का हार बनना पड़ेगा तब फिर विष्णु के गले का हार बनेंगे। शिवबाबा तो है निराकार। ब्रह्मा द्वारा मुख वंशावली रचते हैं। त्रिमूर्ति शिव का भी अर्थ है। त्रिमूर्ति ब्रह्मा का अर्थ नहीं निकलता। बाबा करेक्शन भी करते रहते हैं। गोले के नीचे लिखना है स्वदर्शन चक्र (न कि चर्खा) उस गवर्मेन्ट का चर्खा लगा हुआ है। यहाँ स्वदर्शन चक्र है। दिन-प्रतिदिन करेक्शन होती रहती है।
बाबा ने समझाया है – हमेशा त्रिमूर्ति शिव जयन्ती कहना है। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा वर्सा देते हैं। शिव बाबा है तो वर्सा भी साथ में जरूर चाहिए। तो यह विष्णु है वर्सा। फिर शंकर द्वारा विनाश गाया हुआ है, इसलिए त्रिमूर्ति का चित्र है मुख्य। त्रिमूर्ति चित्र चला आया है। वहाँ भी तुम राज्य करते हो तो तख्त के पिछाड़ी विष्णु का चित्र रहता है। यह जैसे कोट ऑफ आर्मस है। इसका अर्थ मनुष्य नहीं जानते।
बाप ने तुम बच्चों को समझाया है, यह ज्ञान अभी तुमको मिला है, देवताओं के पास यह ज्ञान नहीं रहता। तीसरा नेत्र तुम ब्राह्मणों का खुलता है। बाप कितना सहज समझाते हैं, मनमना–भव। बाप और वर्से को याद करो। ब्रह्मा मुख वंशावली हो ना। तुम ज्ञान गंगायें भी ठहरे। तुम हो ज्ञान सागर द्वारा ब्रह्मा मुख कॅवल से निकली हुई मुख वंशावली, ज्ञान कुमार, कुमारियां। तो तुम हो ज्ञान सागर के बच्चे।
वास्तव में सच्चा–सच्चा तीर्थ तो यह है। आत्माओं और परमात्मा का यह है सच्चा संगम। ज्ञान सागर और ज्ञान गंगायें। यह बड़ी गुप्त समझने की बातें हैं। मोटी बुद्धि वाले यह नहीं समझ सकेंगे। उन्हों के लिए फिर सहज युक्ति है – शिवबाबा और वर्से को याद करो – इन द्वारा। यह बुद्धि में होने से खुशी का पारा चढ़ेगा।
गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ है ना। बेहद का बाप हमको पढ़ा रहे हैं। अभी तुम्हारी बुद्धि में राजयोग का ज्ञान है, जिससे तुम प्रालब्ध पाते हो। वहाँ इस नॉलेज की दरकार नहीं। दरकार यहाँ है। बाप कहते हैं कल्प–कल्प मैं आकर राजयोग सिखलाता हूँ। रचना के आदि–मध्य–अन्त का राज़ समझाता हूँ कि यह चक्र कैसे फिरता है। महिमा सारी संगम की है, जबकि पतित–पावन बाप आकर पुरानी दुनिया से नई दुनिया में ले जाते हैं। पुरानी दुनिया के विनाश के लिए तैयारियां हो रही हैं। देखते हो आजकल दुनिया में क्या हो रहा है।
आज बादशाह है कल मिलेट्री बिगड़ती तो बादशाह को भी कैदी बना देते हैं। कोई को भी मार डालते हैं। ऐसे बहुत केस होते रहते हैं। आजकल कोई बात पर भरोसा नहीं। दु:ख ही दु:ख है। आज किसको बच्चा हुआ, खुशी होगी। कल मर गया तो दु:ख। है ही दु:ख की दुनिया।
अब बाप नई सुख की दुनिया का लायक बना रहे हैं। बाप समझाते हैं बच्चे तुम सो देवी–देवता थे, अभी असुर बन पड़े हो। कल तुम देवताओं की महिमा गाते थे, अपने को पापी नीच कहते थे। कहते हैं हम निर्गुण हारे में… तो जरूर कोई पर तरस किया होगा। इन देवताओं को किसने गुणवान बनाया? यह अभी तुम जानते हो। परमपिता परमात्मा बिगर कोई देवता बना न सके। मनुष्य बिल्कुल विकारी पतित बन पड़े हैं।
बूढ़े हो जाते हैं तो भी विकार नहीं छोड़ते। नहीं तो कायदा है 60 वर्ष के बाद वानप्रस्थ लेना चाहिए। पहले ऐसे करते थे। 60 वर्ष के अन्दर अपना बोझा उतारकर बच्चों को दे देते थे। अब 60 वर्ष की आयु में भी बच्चे पैदा करते रहते हैं। बाप कहते हैं इनकी 60 वर्ष की आयु में बहुत जन्मों के अन्त के अन्त में, जब इनकी वानप्रस्थ अवस्था हुई तब मैंने प्रवेश किया, तब इसने भी सब कुछ छोड़ा। बाप के आने से सारी दुनिया के लिए वानप्रस्थ अवस्था हो जाती है क्योंकि सबको जाना है वापिस इसलिए बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। छोटा वा बड़ा कोई भी रहेगा नहीं।
बाप आकर सबको मीठा बनाते हैं। मुक्ति–जीवनमुक्ति दोनों मीठे धाम हैं। विनाश सबका होना है। हिसाब–किताब चुक्तू भी सबका होता है। सज़ा खाने में देरी नहीं लगती। जैसे काशी कलवट खाते हैं तो पापों से मुक्त हो जाते हैं। फिर नयेसिर हिसाब शुरू हो जाता है। बाकी मुक्ति में एक भी नहीं जाते। वह समझते हैं शिव पर कुर्बान हो निर्वाण–धाम चले जायेंगे। बाप कहते हैं वापिस कोई जा नहीं सकते। पुनर्जन्म तो सबको लेना है। यह पहला नम्बर ही पूरे पुनर्जन्म लेते हैं। तो जरूर पीछे वाले भी लेंगे। तुमने 84 जन्म लिए हैं। शुरू से ही तुम्हारा पार्ट चलता है।
तुम्हारा यह है कल्याणकारी लीप जन्म। इस जन्म में अथवा इस धर्माऊ युग में तुम धर्मात्मा बनते हो। वह सब हैं हद की बातें। वह है धर्माऊ मास, धर्माऊ वर्ष, यह है धर्माऊ युग। यह लीप जन्म ब्राह्मणों का एक ही है। ब्राह्मण हैं चोटी फिर तुम देवता बनेंगे। अब तुम जानते हो बाबा हमको गले का हार बनाते हैं। हम आत्मायें निराकारी दुनिया में रहती हैं। बाप खुद कहते हैं तुम जब अशरीरी थे तो मेरे पास रहते थे।
अभी तुम समझ गये हो – हम पहले–पहले सतयुग में आयेंगे। वहाँ है देवी–देवता धर्म। वहाँ पुरुषार्थ करने की जरूरत नहीं। पुरुषार्थ संगम पर ही किया जाता है। संगमयुग यह है और जो संगम होते हैं, उनकी आयु नहीं गिनी जाती। इस संगम की आयु है। बहुत छोटा सा युग है। इस संगमयुग में ही बाप आकर इनको बदली करते हैं। बाकी उन युगों का कुछ नहीं है। दो कला कम होने से राज्य बदली होता है। यह तुमको साक्षात्कार होता है, कैसे राज्य देते हैं। संगमयुग में बाप आकर पतितों को पावन बनाते हैं इसलिए इस युग की आयु – जब से बाप आया है तब से गिनेंगे। तो जरूर वह आया हुआ है, वही ज्ञान का सागर है। उनकी मुख वंशावली, ज्ञान नदियां यह ब्रह्माकुमार, कुमारियां हैं, इनसे ही ज्ञान पाना है।
बाबा ने कहा है कोई ऐसी नई चीज़ बनाओ जो समझाना सहज हो। उसमें त्रिमूर्ति शिव जयन्ती लिखो। बाबा डायरेक्शन देते हैं परन्तु बनाने वाला होशियार चाहिए। इस ज्ञान यज्ञ में विघ्न भी किसम–किसम के पड़ते हैं, फिर सर्विस ढीली हो जाती है। शिवजयन्ती आई कि आई। बड़े धूम–धाम से मनानी है। देहली में तो बहुत धूमधाम हो सकती है। दोनों के कोट ऑफ आर्मस दिखायेंगे। हम अपनी ईश्वरीय बात करते हैं। बाप है ही कल्याणकारी। बच्चे भी औरों का कल्याण करते रहते हैं। तो बाप देखकर खुश होता है।
कहा जाता है चैरिटी बिगेन्स एट होम। मित्र सम्बन्धियों को भी समझाना है। नहीं तो उल्हना देंगे। प्वाइंट्स बहुत अच्छी मिलती हैं। चित्र भी अच्छे हैं। माला भी कितनी अच्छी है। रुद्र माला बन फिर विष्णु की माला बनती है।
तुम ब्राह्मण हो सच्ची–सच्ची गीता सुनाने वाले। सच्ची–सच्ची यात्रा का राज़ तुम समझाते हो। यहाँ बैठे तुम याद की यात्रा में रहो तो पाप भस्म हो जायेंगे। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने का और कोई उपाय नहीं। योग की बहुत महिमा है। मेहनत भी इसमें है। बहुत तूफान आते हैं। सहज भी है तो मुश्किल भी है।
तुम्हारी योग तपस्या के भी चित्र हैं। राजाई का भी चित्र है। राजयोग से तुम देवता बनते हो। तुम राजऋषि हो, वह हठयोग ऋषि हैं। तुमको नेचुरल जटायें हैं। अभी हम सब बाबा के गले का हार हैं, सब भाई–भाई हैं। बाप से वर्सा भी मिलता होगा। प्रजापिता ब्रह्मा भी गाया हुआ है। वह निराकार पिता यह साकार पिता।
शंकर के लिए दिखाते हैं आंख खोली विनाश हुआ। शंकर को पार्वती, गणेश आदि दिखलाकर गृहस्थी बना दिया है। अन्धश्रधा बहुत है। बाप कहते हैं मैंने तुमको साहूकार बनाया था। तुमने मन्दिर बनाकर, शास्त्र बनाकर, दान कर फालतू खर्चा करते–करते दुर्गति को पा लिया। यह भी ड्रामा में नूँध थी तब तो बाप बैठ समझाते हैं। बाबा तुमको त्रिकालदर्शी बनाते हैं। तीनों कालों का ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है। अच्छा!
“मीठे–मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात–पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। ओम् शान्ति।“
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) यह धर्माऊ युग है। इस समय धर्मात्मा बनना है। सबका कल्याण करना है। मुक्ति और जीवनमुक्ति में चलने का रास्ता बताना है।
2) हमारी यह गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ है। बेहद का बाप हमको पढ़ा रहा है। इस खुशी में रहना है।
वरदान:- “योग की करेन्ट के वायब्रेशन द्वारा किले को मजबूत करने वाले यज्ञ रक्षक भव”
जैसे ब्राह्मण फैमली बढ़ाने की प्लैनिंग करते हो, ऐसे अब यह भी प्लैन करो जो कोई भी आत्मा ब्राह्मण परिवार से किनारे नहीं हो जाए। किले को ऐसा मजबूत बनाओ जो कोई जा ही नहीं सके। जैसे चारों ओर करेन्ट की तारें लगा देते हैं तो आप भी योग के वायब्रेशन द्वारा करेन्ट की तारें लगा दो। जब इस यज्ञ के किले को अपने योग के पावरफुल वायब्रेशन द्वारा मजबूत बनाने का संकल्प इमर्ज हो तब कहेंगे यज्ञ रक्षक।
स्लोगन:- “ज्ञानी तू आत्मा वह है जिसका कर्म साधारण होते भी स्थिति पुरूषोत्तम हो।“ – ओम् शान्ति।
मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे।
अच्छा – ओम् शान्ति।
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नोट: यदि आप “मुरली = भगवान के बोल“ को समझने में सक्षम नहीं हैं, तो कृपया अपने शहर या देश में अपने निकटतम ब्रह्मकुमारी राजयोग केंद्र पर जाएँ और परिचयात्मक “07 दिनों की कक्षा का फाउंडेशन कोर्स” (प्रतिदिन 01 घंटे के लिए आयोजित) पूरा करें।
खोज करो: “ब्रह्मा कुमारिस ईश्वरीय विश्वविद्यालय राजयोग सेंटर” मेरे आस पास.
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