3-12-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “जागो बाप की याद से अपने विकर्म विनाश करो”
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शिव भगवानुवाच : “मीठे बच्चे – अब कलियुग की रात पूरी हो रही है, नवयुग बनाने बाप आया है, इसलिए तुम जागो बाप की याद से अपने विकर्म विनाश करो”
प्रश्नः– जिन बच्चों की बुद्धि सतोप्रधान बनती जाती है, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:- उन्हें दूसरों को आप समान बनाने के ख्याल आते रहेंगे। वह अपना और दूसरों का कल्याण करने की युक्तियाँ रचते रहेंगे। दिन–रात सर्विस में लगे रहेंगे।
प्रश्नः– तुम बच्चों को बड़े ते बड़ी कौन सी कारोबार मिली हुई है?
उत्तर:- सारी दुनिया को बाप का परिचय देने की कारोबार बहुत बड़ी है। कोई भी आत्मा बाप के परिचय बिना रह न जाये। रात–दिन चिंतन चलता रहे कि कैसे किसको समझायें, शंखध्वनि करें।
गीत:- “जाग सजनियाँ जाग……..!”, , अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.
-: ज्ञान के सागर और पतित–पावन निराकार शिव भगवानुवाच :-
अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रति – “मुरली”( यह अपने सब बच्चों के लिए “स्वयं भगवान द्वारा अपने हाथो से लिखे पत्र हैं।”)
“ओम् शान्ति”
शिव भगवानुवाच : यह किसने जगाया? सजनी कहने वाला कौन है? बच्चे जो समझते हैं कि बेहद का बाप एक ही है, जिसका असली नाम शिव है। बाकी जो अनेक नाम रखे हैं वह सब हैं भक्ति मार्ग के। राइट नाम एक ही शिव है। जयन्ति भी मनाते ह़ैं वह हो गई परमात्म जयन्ति। गाते भी है निराकार शिव जयन्ती। आत्मा को जब शरीर मिलता है तब उस शरीर का नाम पड़ता है और शिव तो आत्मा का ही नाम है। उसको कहा जाता है सुप्रीम सोल। सोल का नाम क्या है? नाम गाया हुआ है शिव। गाया भी जाता है शिव जयन्ती। आत्मा की जयन्ती नहीं कहेंगे।
गीता का भगवान तो शिव निराकार है – श्रीकृष्ण शरीर का नाम है, देहधारी है ना। यह तो शिवबाबा ही आकर सजनियों को जगाते हैं और अपनी पहचान भी देते हैं कि मैं आया हूँ नई दुनिया बनाने। अब मामेकम् याद करो। माया पर जीत पानी है। बाबा को कहते भी हैं पतित–पावन। देवतायें जो पावन थे, अभी पतित बने हैं, इसलिए सभी पुकारते हैं कि हे पतित–पावन आओ, आकर हमें लिबरेट करो। किससे? माया रावण से अथवा शैतान से। मनुष्यों को यह समझ में नहीं आता है कि अभी चलना है।
नव–युग, सतयुग अब आया कि आया। गीत में भी कहते हैं नवयुग, वह है पवित्र दुनिया। बाप आते ही हैं पतित से पावन बनाने के लिए। नई दुनिया को नया युग अथवा सतयुग कहा जाता है। यह है कलियुग पुरानी दुनिया। कुम्भकरण की नींद में सब सोये हुए हैं, उनको आकर जगाते हैं। माया ने अज्ञान अंधकार की रात में सबको सुला दिया है। अब बाप कहते हैं बच्चे कुम्भकरण की नींद से जागो। अभी इस पुरानी दुनिया का अन्त है, मौत सामने खड़ा हुआ है। अब रात पूरी होती है, दिन आना है इसलिए तुम जागो। तुम समझते हो बाबा आया हुआ है। हम भी घोर अन्धियारे में सोये पड़े थे, अब बाबा आया है रात को दिन बनाने।
बाबा कहते हैं मैं तुम्हारे लिए दिन अर्थात् नवयुग बनाने आया हूँ। अब मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे क्योंकि इस समय सब पतित हैं। सब कहते हैं हमको इस रावण से लिबरेट करो। यह कोई समझते नहीं हैं कि शैतान का राज्य कब से शुरू होता है। बाप आकर रावण के चम्बे से छुड़ाते हैं, कैसे? यह तो बाप ही जब आये तब आकर सुनाये, तब फिर अनुभव से हम किसको समझा सकें।
सबको नीचे उतरते–उतरते पतित बनना ही है, मुझ पतित–पावन को आना ही है संगम पर। दुनिया के मनुष्य तो घोर अन्धियारे में हैं। समझते हैं कलियुग की आयु लाखों वर्ष पड़ी है क्योंकि शास्त्रों में उल्टा लिख दिया है। अब दैवी युग की स्थापना होनी है। दोज़क को बहिश्त बनाने वाला बाप ही है। बाप कोई दोज़क थोड़ेही रचेंगे। बच्चों को अब यह पक्का निश्चय है कि बाबा हमको पढ़ाते हैं। बहुत समय से पढ़ाते रहते हैं।
अब त्रिमूर्ति शिवजयन्ती आने वाली है। लिखना है शिवजयन्ती सो गीता जयन्ती। श्रीकृष्ण जयन्ती जब मनाते हैं तब गीता जयन्ती नहीं मनाते हैं। श्रीकृष्ण तो छोटा बच्चा है, जब वह बड़ा हो तब गीता सुनाये। त्रिमूर्ति शिव जयन्ती माना ही गीता जयन्ती। यह बहुत समझने की बातें हैं।
वो लोग गीता जयन्ती को अलग कर देते हैं क्योंकि समझते हैं श्रीकृष्ण तो छोटा बच्चा है, वह जन्मते ही गीता कैसे सुनायेगा। तुम बच्चों को ही बाप बैठ राजयोग सिखला रहे हैं। यह भी गाया हुआ है – सेकण्ड में जीवनमुक्ति। बैरिस्टर के स्कूल में बैठा तो बैरिस्टरी पढ़ने लग पड़ते, उसमें एम आब्जेक्ट है – मैं बैरिस्टर बनूँगा। बाकी उसमें ऊंच पद पाना यह फिर पढ़ाई पर मदार है। कोई फिर अच्छा पढ़ते हैं तो ऊंच पद पाते हैं। नहीं पढ़ते हैं तो पद भी कम, सारा मदार है पढ़ाई पर। तुम यहाँ मनुष्य से देवता बनने आये हो। परन्तु देवताओं में भी नम्बरवार मर्तबे हैं। कोई फर्स्टक्लास, कोई सेकण्ड क्लास, कोई थर्ड क्लास। यह सब गुप्त बातें हैं।
कोई की बुद्धि में आ नहीं सकती। कैसे हम अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं। महाभारत लड़ाई भी लगने वाली है। परन्तु पाण्डव सम्प्रदाय तो लड़ते नहीं। असुर और कौरव सप्रदाय आपस में लड़ झगड़कर खत्म हो जाते हैं। तो अब तुम बच्चों को पुरुषार्थ करना है। समझाना भी है – बाबा समय प्रति समय डायरेक्शन देते रहते हैं।
निराकार परमपिता परमात्मा राजयोग कैसे सिखलायेंगे? जरूर शरीर में आयेंगे। बाप श्रीमत दे रहे हैं – बच्चे तुमको याद की यात्रा पर रहना है। मुझे याद करो। यह है योग अग्नि, जिससे विकर्म विनाश होंगे। दिन–प्रतिदिन तुमको अच्छी–अच्छी प्वाइंट्स मिलती रहती हैं। पतित–पावन की प्वाइंट भी अच्छी है। पतित-पावन बाप को बुलाते भी हैं फिर गंगा में जाकर स्नान करते हैं।
तुम लिख भी सकते हो बड़े–बड़े अक्षरों में कि पतित–पावन तो परमपिता परमात्मा को कहा जाता है। ज्ञान का सागर भी वही है। सारी दुनिया को पावन बनाते हैं। सारी दुनिया का क्वेश्चन है ना। दुनिया पावन कैसे बने? गंगा, जमुना आदि यह नदियाँ तो चली आती हैं। अभी कलियुग का समय है तो कुछ गड़बड़ होती है। सतयुग में फिर सब नदियाँ अपने ठिकाने पर आ जायेंगी। परन्तु इनसे पावन तो कोई बनते नहीं। बहुत क्लीयर करके समझाना है। पर्चे भी बांटने हैं। वह भी आदमी-आदमी देखकर देना है।
मुख्य दो तीन प्वाइंट्स जरूर समझानी हैं। वास्तव में इस समय सब पतित विकारी हैं। सबकी उतरती कला है। गुरूनानक ने भी कहा है कि मूत पलीती कपड़… भारत को श्रेष्ठाचारी तो बनना ही है। इसको भ्रष्टाचारी कहेंगे, श्रेष्ठाचारी सिर्फ देवतायें हैं। इस समय और कोई बन न सके क्योंकि माया का राज्य है ना। हाँ, बाकी भक्ति का सुख मिलता है।
यहाँ रचना भी कोई योगबल से नहीं होती है, विकार से पैदाइस होती है। पहले थोड़े होते हैं फिर वृद्धि होने से आपस में लड़ते हैं। हर एक को पहले सुख फिर दु:ख देखना है। यह मनुष्यों की बात है। सतयुग में मनुष्य सुखी हैं तो जानवर आदि भी सुखी रहते हैं। तो बाप समझाते हैं ऐसे–ऐसे लिखो। त्रिमूर्ति शिव जयन्ती सो श्रीमत भगवत गीता जयन्ती। फिर समझाना भी है, जो समझते हैं उन्हों की दिल होती है कि यह बातें दूसरों को भी समझायें।
समझाने बिगर वृद्धि कैसे होगी। ड्रामा अनुसार जिनका जो पार्ट है समझने और समझाने का वह अपना पार्ट बजाते हैं। भक्ति का पार्ट भी दिन–प्रतिदिन जोर होता जाता है। गाया भी हुआ है जब भंभोर को आग लगती है तब ऑख खुलती है। तुम बच्चों को शंखध्वनि करनी है। रात–दिन चिंतन चलना चाहिए – कैसे किसको समझायें। सारी दुनिया को बाप का परिचय देना, कितनी बड़ी कारोबार है।
दुनिया कितनी बड़ी है। बहुत धर्म, बहुत खण्ड हैं। सतयुग में एक ही धर्म होता है फिर वृद्धि को पाते हैं। यह भी समझते हो – प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ही ब्राह्मण पैदा होते हैं। ब्राह्मण वर्ण भी नहीं दिखाते हैं तो पैदा करने वाला भी नहीं दिखाते हैं। तो यह समझाना है कौरव और पाण्डव दिखाते हैं। तुम हो ब्राह्मण। प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं तो प्रजापिता जरूर चाहिए, जिससे भिन्न–भिन्न बिरादरियाँ पैदा होती हैं। देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र दिखाते हैं। बाकी संगमयुगी ब्राह्मणों को गुम कर दिया है।
गायन भी करते हैं त्रिमूर्ति ब्रह्मा, परन्तु त्रिमूर्ति ब्रह्मा का अर्थ नहीं निकलता। उन्हों को देने वाला कौन? तुम समझते हो निराकार बाप ने ब्रह्मा मुख द्वारा बैठ समझाया है। ब्रह्मा के मुख कमल से बच्चे पैदा होते हैं। जब तुमको सुनायें तब ब्रह्मा भी सुने। तुम न होते तो शिव–बाबा क्या करते। एक को तो नहीं सुनाया जाता है।
शास्त्रों में एक अर्जुन का नाम लिख दिया है। तो जिस समय जो प्वाइंट निकलती है, उस समय उसी सर्विस में लगना चाहिए। तुम्हें हर बात बहुत क्लीयर करके समझाई जाती है। परन्तु योग में रहें, पावन बनें – यह मेहनत है। विष छोड़ना, कितनी मेहनत है। विष पर ही झगड़ा होता है। तो बच्चों को सर्विस पर यह अटेन्शन देना है कि पढ़कर पढ़ाना है। इस सर्विस में ही कल्याण है। ओना रहना चाहिए।
जो नये आते हैं, उनसे फार्म भराने वाले बहुत तीखे चाहिए। फार्म भराने समय यह भी पूछो तुम साधना करते हो, मुक्तिधाम जाने चाहते हो ना। मुक्तिधाम का मालिक तो एक ही परमपिता परमात्मा है, वह बाप ही आकर पावन बनाते हैं। यह स्नान आदि तो भारत में ही करते हैं और धर्मों में नहीं करते। वह फिर अपने धर्म स्थापक के आगे माथा टेकते हैं, फूल चढ़ाते हैं। महिमा गाते हैं। उन्हों को यह तो मालूम ही नहीं है कि पतित-पावन एक ही बाप है।
अभी क्रिसमस में क्राइस्ट का कितना मनाते हैं। फिर भी गॉड फादर को याद करते हैं, कहते हैं ओ गॉड फादर, उनको पुकारते हैं। उन्हों को भी (क्रिश्चियन्स को भी) यह नॉलेज मिलेगी। बाबा तो कहते रहते हैं कि चित्र बनाओ तो विलायत में भी भेज दें। बेहद सृष्टि के कल्याण के लिए बुद्धि चलनी चाहिए। बाबा की बुद्धि चलती रहती है। इन चित्रों का कद्र बहुत थोड़ों को है। बाप ने दिव्य दृष्टि द्वारा यह बनाये हैं। कितना रिगार्ड होना चाहिए, इनसे तो बहुत भारी फर्स्टक्लास सर्विस होती है। ड्रामा अनुसार कोई निकलेंगे जो चित्र आदि बनायेंगे। आगे चलकर ऐसे बुद्धिवान बच्चे निकलेंगे जो सेवा में नई–नई इन्वेंशन करते रहेंगे, जिसे देखते ही दिल खुश हो जाए।
अंग्रेजी तो सब तरफ फैली हुई है, भाषायें कितनी ढेर हैं। सब देशों में अंग्रेजी वाले जरूर होंगे इसलिए बाबा भी अंग्रेजी और हिन्दी को उठाते हैं। आखरीन सब भाषाओं में निकलेगा। किसको भी समझाना है बहुत सहज। परन्तु देखा जाता है किसकी बुद्धि में नहीं बैठता तो वह क्या काम करेंगे! धन है और दान नहीं करते हैं तो उनको मनहूस कहा जाता है। एक कान से सुनते हैं, दूसरे से निकाल देते हैं। हर एक को अपनी उन्नति का ख्याल जरूर होना चाहिए। संग के रंग में नहीं आना है।
सर्विस में बिज़ी रहना है, नहीं तो बड़ा भारी घाटा पड़ जायेगा। अपनी उन्नति के लिए कोशिश जरूर करना चाहिए। बाबा मैं जाकर बहुतों को आप समान बनाने की सर्विस करती हूँ, ऐसे–ऐसे ख्याल आने चाहिए। उनको कहा जाता है सतोप्रधान बुद्धि। तमोप्रधान बुद्धि न अपना, न दूसरों का ख्याल करते हैं, उनको बेसमझ कहा जाता है। सतोप्रधान बुद्धि समझदार हैं। हिसाब–किताब भी कोई–कोई का बहुत कड़ा रहता है। समझते हुए भी फंसे हुए हैं। इस समय तो रात दिन सर्विस में लगा रहना चाहिए। खुद की ही कमाई है। मुझे बाप से पूरा वर्सा लेना है। नहीं तो कल्प–कल्प का घाटा पड़ जायेगा। पहले अपना कल्याण करेंगे तब दूसरों का भी कर सकेंगे। अच्छा!
“मीठे–मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात–पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। ओम् शान्ति।“
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) ज्ञान धन दान करने में मनहूस नहीं बनना है। अपनी और दूसरों की उन्नति के लिए युक्तियाँ निकालनी हैं।
2) मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है। सर्विस और पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन देना है। कड़े हिसाब–किताब को योगबल से चुक्तू करना है।
वरदान:- “याद और सेवा द्वारा अपने भाग्य की रेखा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने वाले भाग्यवान भव”
ब्राह्मणों की जन्म-पत्री में तीनों ही काल अच्छे से अच्छे हैं। जो हुआ वह भी अच्छा और जो हो रहा है वो और अच्छा और जो होने वाला है वह बहुत-बहुत अच्छा। सभी के मस्तक पर श्रेष्ठ तकदीर की लकीर खींची हुई है, सिर्फ याद और सेवा में सदा बिजी रहो। यह दोनों ऐसे नेचुरल हों जैसे शरीर में श्वांस नेचुरल है। भाग्य विधाता बाप ने याद और सेवा की यह विधि ऐसी दी है जिससे जो जितना चाहे उतना अपना श्रेष्ठ भाग्य बना सकते हैं।
स्लोगन:- “सन्तुष्टता की सीट पर बैठकर परिस्थितियों का खेल देखना ही सन्तुष्टमणि बनना है।“ – ओम् शान्ति।
मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे।
अच्छा – ओम् शान्ति।
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नोट: यदि आप “मुरली = भगवान के बोल“ को समझने में सक्षम नहीं हैं, तो कृपया अपने शहर या देश में अपने निकटतम ब्रह्मकुमारी राजयोग केंद्र पर जाएँ और परिचयात्मक “07 दिनों की कक्षा का फाउंडेशन कोर्स” (प्रतिदिन 01 घंटे के लिए आयोजित) पूरा करें।
खोज करो: “ब्रह्मा कुमारिस ईश्वरीय विश्वविद्यालय राजयोग सेंटर” मेरे आस पास.
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