29-12-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “कोई कितना भी गुणवान हो – मीठा हो – धनवान हो तुम्हें उसकी तरफ आकर्षित नहीं होना है”
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शिव भगवानुवाच : “मीठे बच्चे – मीठे बच्चे – कोई कितना भी गुणवान हो – मीठा हो – धनवान हो तुम्हें उसकी तरफ आकर्षित नहीं होना है, जिस्म को याद नहीं करना है”
प्रश्नः जिन बच्चों को नॉलेज मिली है उनके मुख से बाप के प्रति कौन से मीठे बोल निकलते हैं?
उत्तर:- ओहो! बाबा आपने तो हमें जीयदान दे दिया। मीठे बाबा आपने हमें सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज देकर, सर्व दु:खों से छुड़ा दिया तो कितनी शुक्रिया निकलनी चाहिए।
प्रश्नः अन्त के समय बाप के सिवाए किसी में भी रग न जाए उसके लिए क्या करना है?
उत्तर:- बाबा कहे बच्चे – कोई भी चीज़ लोभ के वश अपने पास एक्स्ट्रा नहीं रखनी है। एक्स्ट्रा रखेंगे तो उसमें रग जायेगी। बाप की याद भूल जायेगी।
गीत:- “तुमको निहारने को दिल चाहता है……………!”, , अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.
-: ज्ञान के सागर और पतित–पावन निराकार शिव भगवानुवाच :-
अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रति – “मुरली”( यह अपने सब बच्चों के लिए “स्वयं भगवान द्वारा अपने हाथो से लिखे पत्र हैं।”)
“ओम् शान्ति”
शिव भगवानुवाच : बच्चों को धीरज कौन दे रहा है? बच्चों की बुद्धि झट बेहद के बाप तरफ चली जाती है। सो भी सिर्फ इस समय ही तुम बच्चों की बुद्धि जाती है। यूँ तो बेहद बाप की तरफ बहुतों की बुद्धि जाती है। परन्तु उन्हों को ये मालूम ही नहीं है कि यह संगमयुग है। बाप आया हुआ है, सबको एक ही बार पता तो नहीं पड़ सकता। बच्चे बाप का बनें तो मालूम पड़े। अब तुम बच्चों ने बाप को जाना है। जानते हो बाबा आया हुआ है।
बेहद का वर्सा दे रहे हैं, जो 5 हजार वर्ष पहले तुमको दिया था। वह आते ही हैं बच्चों को बेहद स्वर्ग का वर्सा देने। वह बेहद का बाप होते हुए फिर पढ़ाते भी हैं। भगवान यानि बाप फिर भगवानुवाच अर्थात् पढ़ाते हैं। पढ़ाते क्या हैं? वह भी तुम बच्चे समझते हो। हम बाप के सम्मुख बैठे हैं। बाबा कोई शास्त्र तो पढ़ा हुआ नहीं है। यह दादा पढ़ा हुआ है। उनको कहा ही जाता है ज्ञान का सागर, आलमाइटी अथॉरिटी।
खुद भी कहते हैं मैं सभी वेदों, शास्त्रों आदि को अच्छी रीति जानता हूँ – यह सब भक्ति मार्ग की सामग्री हैं। यह मेरे रचे हुए नहीं हैं। पूछा जाता है यह शास्त्र कब से पढ़ते आये हो? तो कहते हैं यह परम्परा से चला आया है। बाप कहते हैं मेरे को तो कोई पढ़ाने वाला नहीं है। न मेरा कोई बाप है और सब गर्भ में प्रवेश करते हैं, माता की परवरिश लेते हैं। मैं तो गर्भ में आता ही नहीं हूँ, जो माता की परवरिश लूँ। मनुष्य की आत्मा गर्भ में जाती है। सतयुग के लक्ष्मी-नारायण ने भी तो गर्भ से जन्म लिया। तो वह भी मनुष्य ठहरे।
मैं तो इस शरीर में आकर प्रवेश करता हूँ, ड्रामा प्लैन अनुसार कल्प पहले मुआफिक। यह अक्षर और कोई जानते नहीं। कल्प की आयु का ही किसको पता नहीं है। बाप ही बैठ समझाते हैं मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, शिक्षक भी हूँ, सतगुरू भी हूँ। तुम जानते हो यह बाबा मिलकियत देने वाला है। बाबा स्वर्ग की बादशाही देने आया है। नर्क की राजाई थोड़ेही देंगे! यह बुद्धि में रहना चाहिए कि बेहद का बाप हमको राजयोग सिखला रहे हैं। बाप स्वर्ग की स्थापना करने वाला है। कहते हैं मेरी मत पर चलो, मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। फिर द्वापर से तुम रावण की मत पर चलते हो। सतयुग में तो कोई मनुष्य की मत गति सद्गति के लिए मिलती नहीं। न दरकार है।
कलियुग में सब गति सद्गति के लिए मत मांगते हैं। जानते हैं हम कोई समय स्वर्ग में थे, पावन थे, तब तो पुकारते हैं – हे पतित-पावन, हे सद्गति दाता हमको सद्गति दो। सतयुग में यह रड़ी नहीं मारी जाती। अब तुम जानते हो बाबा आया हुआ है। बहुत सरलता से राजयोग और सहज ज्ञान की मत देते हैं। उनकी श्रीमत है। ऊंचे ते ऊंचा है भगवान। उनसे ऊंचा कोई है नहीं, और वह हमारा रूहानी बाप है। रूहानी फादर होने के कारण वह रूहों को ही ज्ञान देते हैं, जिस्मानी फादर होने से बच्चे जिस्मानी नॉलेज उठाते हैं इसलिए बाप कहते हैं – आत्म-अभिमानी बनो और बाप को याद करो। कोई भी जिस्मानी याद नहीं रहनी चाहिए।
तुम आत्मा हो, मनुष्य भल कितना भी अच्छा हो, धनवान हो, मीठा हो तो भी देहधारी को याद नहीं करना। एक परमपिता परमात्मा को ही याद करना। कोई साहूकार का बच्चा होगा तो बाप को ही याद करेगा। गाँधी को वा शास्त्री आदि को थोड़ेही याद करेगा। सबसे जास्ती याद परमपिता परमात्मा को करते हैं फिर कोई लक्ष्मी-नारायण को, कोई राधे-कृष्ण को भी करते हैं। समझते हैं यह होकर गये हैं। उन्हों की हिस्ट्री-जॉग्राफी भी है।
ऊंचे ते ऊंचा है बाप, वह फिर आयेगा, जरूर वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होगी। कलियुग के बाद फिर सतयुग आयेगा। परन्तु यह सिवाए तुम बच्चों के और किसको भी मालूम नहीं। सिर्फ कहने मात्र कहते हैं – हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट। समझते कुछ भी नहीं। पहले तुम भी ऐसे थे। समझते थे बरोबर लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, परन्तु कितना समय चला, क्या हुआ फिर वह कहाँ चले गये, कुछ भी पता नहीं था। अभी भी नम्बरवार अच्छी रीति धारण कर श्रीमत पर चलते हो – यह भी ठीक है। मन्सा-वाचा-कर्मणा मदद देते हैं। ज्ञान और योग की मदद से बहुतों का कल्याण करेंगे।
तुम शक्ति सेना डबल अहिंसक हो। तुम्हारे में कोई भी हिंसा नहीं है। तुम किसको भी दु:ख नहीं देते हो। हिंसा अर्थात् दु:ख देना। घूंसा मारना, तलवार चलाना वा काम कटारी चलाना – यह सब दु:ख देना है। तुम कोई भी प्रकार का दु:ख नहीं देते हो इसलिए अहिंसा परमोधर्म कहा जाता है। मनुष्य तो सब हिंसा करते हैं। है ही रावण राज्य। मनुष्यों ने तो श्रीकृष्ण के चरित्रों में भी हिंसा दिखा दी है। तुम बच्चे जानते हो श्रीकृष्ण तो राजकुमार था, उनके ऐसे चरित्र वा जीवन कहानी की बात नहीं। चरित्र हैं ही ईश्वर के। वही रत्नागर, सौदागर, ज्ञान का सागर, जादूगर है।
अरे, निराकार परमात्मा फिर सौदा कैसे करेगा? सौदागर तो मनुष्य होगा ना। इन सब बातों को तुम जानते हो तो कैसे सौदागर और रत्नागर है। उनको सब क्यों याद करते हैं? हे पतित-पावन, सर्व के सद्गति दाता, दु:ख हर्ता सुखकर्ता। महिमा भी एक की है। यह महिमा न तो सूक्ष्मवतन वासी, न स्थूलवतन वासी की हो सकती है। यह महिमा है मूलवतनवासी की। ऊंचे ते ऊंच है बाप, हम आत्मायें उनके बच्चे हैं। हम सब नम्बरवार पार्ट बजाने आते हैं।
बाप कहते हैं – यह जो नॉलेज तुमको सुनाता हूँ – वह प्राय:लोप हो जाती है। वह गीतायें तो ढेर हैं। फिर भी पुरानी गीतायें निकलेंगी। तुम्हारे कागज थोड़ेही निकलेंगे। गीता बहुत भाषाओं में हैं। ऊंचे ते ऊंची गीता है परन्तु सब बनाई है मनुष्यों ने, यथार्थ तो है नहीं इसलिए सब अन्धेरे में हैं, तब गाया जाता है ज्ञान सूर्य प्रगटा… इस सूर्य की महिमा नहीं। ज्ञान सूर्य की महिमा है।
यह सूर्य धूप देता, सागर पानी देता, उनके नाम इन पर, इनके नाम उन पर लगा दिये हैं। ज्ञान सागर को ही ज्ञान सूर्य कहते हैं। तुम जानते हो हमारा अन्धियारा अब दूर हो गया है। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को तुम ही जानते हो। जब रचयिता के पार्ट को जानते हो तो औरों के पार्ट को भी जरूर जानते होंगे। तुमको नॉलेज मिल रही है। तुम जानते हो यह बाबा बहुत प्यारा है। हमको जीयदान देते हैं। दु:ख से छुड़ाते हैं। काल के चम्बे से छुड़ाते हैं। कोई मरने से बच जाते हैं – कहते हैं डाक्टर ने जीयदान दिया। तुमको तो एक ही बार ऐसा जीयदान मिलता है – जो तुम कभी बीमार नहीं होंगे, फिर यह नहीं कहना पड़ेगा कि फलाने ने जीयदान दिया। यह है बिल्कुल नई बात।
अभी तुम जीते जी बाप के बने हो। कोई-कोई को फिर माया रावण अपनी तरफ खींच लेती है। उसे कहेंगे रावण रूपी काल खा गया। ईश्वरीय गोद में आकर फिर बदलकर आसुरी गोद में चले जाते हैं। काल ने नहीं खाया परन्तु जीते जी ईश्वर के बने, फिर जीते जी रावण के बन पड़ते हैं। यहाँ धर्मात्मा बने फिर वहाँ जाकर अधर्मी बन जाते हैं। यहाँ संगम पर धर्म का राज्य है, वहाँ अधर्म का राज्य है। सतयुग में है ही एक धर्म। कलियुग में है अधर्म का राज्य, कौरव राज्य। पाण्डवों के साथ कहते हैं श्रीकृष्ण थे। तुम्हारे साथ तो शिवबाबा है। जुआ की बात नहीं। राजाई न कौरवों की है, ना पाण्डवों की है। बाप आकर धर्म का राज्य स्थापन करते हैं। चाहते भी हैं रामराज्य हो। हम स्वर्गवासी बने अर्थात् यह नर्क है।
परन्तु किसको सीधा नर्कवासी कहें तो बिगड़ पड़ते हैं। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। बेहद का बाप निराकार है। बेहद के बाप को ही भगवान कहा जाता है। हद के बाप को भगवान थोड़ेही कहेंगे। श्रीकृष्ण को थोड़ेही ज्ञान सागर, पतित-पावन कहेंगे। उनकी महिमा सिर्फ तुम ब्राह्मण जानते हो। तुमको बाप आकर आप समान बनाते हैं। बाप भी जानते हैं, तुम बच्चे भी जान जाते हो, वर्सा मिल जाता है। जैसेकि लौकिक बाप से बच्चों को वर्सा मिलता है। वह तो अलग-अलग है। यहाँ तुम समझते हो हम बेहद के बाप से वर्सा पा रहे हैं। ऐसा कोई स्कूल वा सतसंग होगा नहीं, जहाँ सब कहें हम बेहद के बाप से वर्सा लेने आये हैं। यहाँ बाप राजयोग सिखलाते हैं। कहते हैं तुम नर से नारायण बनेंगे। सो जरूर संगमयुग अर्थात् कलियुग अन्त और सतयुग आदि का संगम होगा तब तो तुम पुरुषार्थ कर नर से नारायण बनेंगे। यह राजयोग हम बाबा से सीख रहे हैं – नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनने के लिए। नर-नारायण का मन्दिर भी बनाते हैं। उनको 4 भुजायें देते हैं क्योंकि साथ में हैं।
नारी लक्ष्मी का फिर मन्दिर नहीं है। नारी लक्ष्मी को दीपमाला पर बुलाते हैं। उनको महालक्ष्मी कहते हैं। तुम लक्ष्मी की मूर्ति 4 भुजाओं के सिवाए नहीं देखेंगे। जिसको पूजते हैं, यह युगल विष्णु का रूप है, इसलिए 4 भुजायें दी हैं। यह सब बातें बाप ही समझाते हैं। मनुष्य तो कुछ जानते नहीं। भगवान को ढूँढते रहते हैं। धक्का खाते रहते हैं। भगवान तो है ही ऊपर फिर ढूंढने की क्या दरकार है।
मन्दिर में जो श्रीकृष्ण का चित्र है वह चित्र घर में रख क्यों नहीं पूजते? खास मन्दिर में ही क्यों जाते हैं? मन्दिर में जायेंगे, पैसे रखेंगे, दान करेंगे। घर में दान किसको करेंगे? तो यह सब भक्ति मार्ग की रस्में हैं। बाप कहते हैं तुमको कोई भी चित्र रखने की दरकार नहीं। क्या तुम शिवबाबा को नहीं जानते हो जो चित्र रखते हो? क्या चित्र रखने से याद कर सकते हो? बाबा जीता है फिर बच्चे चित्र क्यों रखेंगे? बाप तुमको ज्ञान दे रहा है फिर चित्र क्या करेंगे? बूढ़े हैं याद भूल जाती है इसलिए चित्र दिया जाता है।
बाकी और कोई भी देहधारी को याद करते रहेंगे तो अन्त समय वही याद आयेगा। कुछ न कुछ रग है तो वह तुम्हारे पीछे पड़ेगा। फिर भल कितने भी शिवबाबा के चित्र रखो। अगर रग और तरफ होगी तो वह याद जरूर आयेगा इसलिए बाप कहते हैं बच्चे पूरा नष्टोमोहा हो जाओ। किसी भी चीज़ में मोह होगा, 2-4 जोड़ी जूते होंगे तो वह याद आयेंगे इसलिए कहा जाता है ज्यादा कोई भी वस्तुएं नहीं रखो। नहीं तो बुद्धि उसमें जायेगी। सिवाए बाप के और कोई को याद न करो। लोभ होता है ना – हम अच्छे-अच्छे वस्त्र रखें, 2-4 जूते रखें, घड़ी रखें। थोड़े पैसे रखें। रखेंगे तो वह याद आयेगा।
बाबा को मालूम होना चाहिए – तुम्हारे पास क्या रखा है। वास्तव में तुमको कुछ भी रखना नहीं है, जो मिलता है वही रखना है। एक बाप के सिवाए और कुछ भी याद न रहे। इतनी प्रैक्टिस करनी है – तब ही विश्व के मालिक बनेंगे। यह कोई नहीं समझते कि राधे-कृष्ण विश्व के मालिक थे, सिर्फ कहते हैं भारत में राज्य करके गये हैं। जमुना के कण्ठे पर इनके महल थे। परन्तु वह सारे विश्व के मालिक थे। यह सिर्फ तुम्हारी बुद्धि में है। बेहद का बाप बेहद का मालिक बनाने आया है। प्रजा और राजा में फ़र्क बहुत है। यहाँ तुम नर से नारायण बनने आये हो तो पूरा फालो करो। फकीर से अमीर बनना है। इतना पुरुषार्थ करना चाहिए। खुशी से पढ़ना चाहिए। अच्छा!
“मीठे–मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात–पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। ओम् शान्ति।“
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) ज्ञान-योग से सबको मदद करनी है। डबल अहिंसक बनना है। किसी को भी दु:ख नहीं देना है।
2) नष्टोमोहा बनना है। किसी भी चीज़ में बुद्धि की रग नहीं रखनी है। एक बाप की याद सदा रहे- इसकी प्रैक्टिस करनी है।
वरदान:- “ब्राह्मण जीवन में याद और सेवा के आधार द्वारा शक्तिशाली बनने वाले मायाजीत भव”
ब्राह्मण जीवन का आधार है याद और सेवा। अगर याद और सेवा का आधार कमजोर है तो ब्राह्मण जीवन कभी तेज चलेगा, कभी ढीला चलेगा। कोई सहयोग मिले, कोई साथ मिले, कोई सरकमस्टांस मिले तो चलेंगे नहीं तो ढीले हो जायेंगे इसलिए याद और सेवा दोनों में तीव्रगति चाहिए। याद और नि:स्वार्थ सेवा है तो मायाजीत बनना बहुत सहज है फिर हर कर्म में विजय दिखाई देगी।
स्लोगन:- “विघ्न-विनाशक वही बनता है जो सर्व शक्तियों से सम्पन्न है।“ – ओम् शान्ति।
मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे।
अच्छा – ओम् शान्ति।
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नोट: यदि आप “मुरली = भगवान के बोल“ को समझने में सक्षम नहीं हैं, तो कृपया अपने शहर या देश में अपने निकटतम ब्रह्मकुमारी राजयोग केंद्र पर जाएँ और परिचयात्मक “07 दिनों की कक्षा का फाउंडेशन कोर्स” (प्रतिदिन 01 घंटे के लिए आयोजित) पूरा करें।
खोज करो: “ब्रह्मा कुमारिस ईश्वरीय विश्वविद्यालय राजयोग सेंटर” मेरे आस पास.
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