13-10-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “अब तुम्हारे सुख के दिन आये कि आये”
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शिव भगवानुवाच : “मीठे बच्चे – अब तुम्हारी दिल में खुशी की शहनाई बजनी चाहिए क्योंकि बाप आये हैं हाथ में हाथ देकर साथ ले जाने, अब तुम्हारे सुख के दिन आये कि आये”
प्रश्नः– अभी नये झाड़ का कलम लग रहा है इसलिए कौन सी खबरदारी अवश्य रखनी है?
उत्तर:- नये झाड़ को तूफान बहुत लगते हैं। ऐसे-ऐसे तूफान आते हैं जो सब फूल फल आदि गिर जाते हैं। यहाँ भी तुम्हारे नये झाड़ का जो कलम लग रहा है उसे भी माया जोर से हिलायेगी। अनेक तूफान आयेंगे। माया संशयबुद्धि बना देगी। बुद्धि में बाप की याद नहीं होगी तो मुरझा जायेंगे, गिर भी पड़ेंगे इसलिए बाबा कहते बच्चे माया से बचने के लिए मुख में मुहलरा डाल दो अर्थात् धंधा आदि भल करो लेकिन बुद्धि से बाप को याद करते रहो। यही है मेहनत।
गीत:- “ओम् नमो शिवाए ……..”, अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.
-: ज्ञान के सागर और पतित-पावन निराकार शिव भगवानुवाच :-
अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रति – “मुरली”(अपने सब बच्चों के लिए “स्वयं भगवान द्वारा अपने हाथो से लिखे पत्र हैं”)
“ओम् शान्ति”
शिव भगवानुवाच : तुम बच्चों को अच्छी तरह निश्चय हो गया है कि बाबा आकर नई दुनिया रचते हैं जो हम पतित हैं उनको पावन बनाने। ऐसे नहीं कि सृष्टि है नहीं और बाप आकर रचते हैं। बाप को बुलाते हैं कि हम जो पतित हैं उनको आकर पावन बनाओ। दुनिया तो है ही। बाकी पुरानी को नई करते हैं। यह ज्ञान मनुष्यों के लिए है, जानवरों के लिए नहीं है क्योंकि मनुष्य पढ़कर मर्तबा पाते हैं।
अभी जो दु:ख देने की सामग्री है, इसमें सब आ गये – देह, देह के धर्म आदि। तो बाप इस दु:ख की सामग्री को सुख का बनाते हैं तब बाप ने कहा है मैं दु:खधाम को सुखधाम बनाता हूँ, मैं हूँ ही दु:खहर्ता सुखकर्ता। अब तुम्हारे अन्दर शहनाई बजनी चाहिए कि हमारे सुख के दिन सामने आ रहे हैं। जानते हो कि बाप कल्प के बाद मिलते हैं और कोई ऐसे किसके लिए नहीं कहते।
भगवान आते ही हैं भक्तों की सद्गति करने। अपने साथ हाथ में हाथ देकर ले चलता हूँ। ऐसे नहीं कि सुखधाम में जाकर तुमको छोड़ता हूँ। नहीं, इस समय के पुरूषार्थ अनुसार आपेही जाकर प्रालब्ध भोगते हो। जितना जो औरों को समझाते हैं उतना उनको ड्रामा पक्का हो जाता है। मनुष्य कोई ड्रामा देखकर आते हैं तो कुछ दिन तक पक्का हो जाता है। तो तुमको यह भी पक्का हो जाता है क्योंकि यह बेहद का ड्रामा है। सतयुग से लेकर इस समय तक ड्रामा बुद्धि में है। सेन्टर पर आते हैं तो सावधानी मिलती है। तो यह याद आ जाता है। यहाँ भी बैठे हो तो याद है।
सृष्टि तो बेहद का ड्रामा है। परन्तु है सेकेण्ड का काम। समझाते हैं तो झट ड्रामा बुद्धि में आ जाता है। जानते हैं कि कौन-कौन आकर धर्म स्थापन करते हैं। मूलवतन को याद करना भी सेकेण्ड का काम है। दूसरा नम्बर है सूक्ष्मवतन। तो वहाँ भी कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि वहाँ भी सिर्फ ब्रह्मा, विष्णु, शंकर दिखाया है। वह भी झट बुद्धि में आ जाता है। फिर है स्थूलवतन। इसमें 4 युगों का चक्र आ जाता है। यह है बाप की रचना, ऐसे नहीं कि सिर्फ तुम स्वर्ग को याद करते हो। नहीं, स्वर्ग से लेकर कलियुग अन्त तक का तुम्हारी बुद्धि में राज़ है तो तुमको औरों को भी समझाना है।
यह झाड और गोले (सृष्टि चक्र) का चित्र सबके घर में रहना चाहिए। जो कोई आवे उनको बैठ समझाना चाहिए। रहमदिल और महादानी बनना है इसको अविनाशी ज्ञान रत्न कहा जाता है। इस समय तुम भविष्य के लिए धनवान बनो।
बाप समझाते हैं बच्चे अब तक तुमने जो कुछ पढ़ा और सुना है उन सबको भूल जाओ। मनुष्य मरने समय सब कुछ भूल जाते हैं ना। तो यहाँ भी तुम जीते जी मरते हो। तो बाप कहते हैं मैं नई दुनिया के लिए जो बातें सुनाता हूँ वही याद करो। अभी हम अमरलोक में जाते हैं और अमरनाथ द्वारा अमरकथा सुन रहे है। कोई पूछते हैं मृत्युलोक कब शुरू होता है? बोलो, जब रावण राज्य शुरू होता है। अमरलोक कब शुरू होता है? जब रामराज्य शुरू होता है।
भक्ति की सामग्री तो ऐसे फैली है जैसे झाड़ फैला हुआ हो। अब नये झाड़ का कलम लग रहा है तो ऐसे झाड़ को माया के तूफान देखो कितने लगते हैं। जब तूफान लगता है तो बगीचे में जाकर देखो कितने फल फूल गिरे हुए होते हैं। थोड़े बच जाते हैं। यहाँ भी ऐसे है कि माया के तूफान आने से और बाबा की याद न रहने से मुरझा जाते हैं। कोई तो गिर पड़ते हैं। हातमताई का खेल है ना कि मुख में मुहलरा डालते थे। अगर बुद्धि में बाबा याद हो तो माया का असर नहीं होता है।
बाबा यह थोड़ेही कहते हैं कि धन्धा आदि न करो। धन्धा आदि करते बाप को याद करो – इसमें मेहनत है। राजाई लेना, कोई कम बात है क्या! कोई हद की राजाई लेते हैं तो भी कितनी मेहनत करनी पड़ती है। यह तो सतयुग की राजाई लेते हो। मेहनत जरूर करनी पड़े। परमात्मा को ज्ञान का सागर कहा जाता है, जानी जाननहार नहीं। जानी-जाननहार माना थॉट रीडर, यानी अन्दर को जानने वाला। वास्तव में यह भी एक रिद्धि-सिद्धि है, उससे प्राप्ति कुछ नहीं। अगर उल्टा भी लटक जायें तो भी प्राप्ति कुछ नहीं।
आजकल तो आग से भी पार करते हैं। एक संन्यासी था उसने आग से पार किया। सुना है सीता ने आग से पार किया तो यह भी आग से पार करते हैं। अब यह सब दन्त कथायें हैं। वह कह देते शास्त्र अनादि हैं। कब से? तारीख तो कोई है नहीं। दूसरे धर्मों की तारीख है, उससे हिसाब लगाया जा सकता है। जैसे कहते हैं क्राइस्ट के 3000 वर्ष पहले भारत हेविन था। परन्तु हेविन में क्या था, यह नहीं जानते।
झाड़ का राज़ तुम्हारी बुद्धि में है। तुम वर्णन कर सकते हो कि इस वृक्ष का फाउन्डेशन कैसे लगा, फिर कैसे वृद्धि को पाया। जब फ्लावरवाज़ (फूलदान) बनाते हैं, तो ऊपर में फूल बनाते हैं। यह भी ऐसे है। पहले देवी-देवता धर्म का तना था। पीछे यह सब धर्म तने से निकलते हैं अर्थात् उनकी प्रजा का फ्लावर दिखाते हैं। अब विचार करो हर एक धर्म जब आता है तो फूलों का बगीचा था। गिरती कला पीछे आती है अर्थात् पहले गोल्डन, सिल्वर, कॉपर अब आइरन में हैं। पढ़ाई तुम्हारी बुद्धि में होनी चाहिए।
नॉलेजफुल बाप बैठ वृक्ष और ड्रामा का फुल नॉलेज देते हैं। इस कारण परमात्मा को ज्ञान का सागर, बीजरूप कहा जाता है। यह मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है जो ऊपर में रहता है। जो इनकारपोरियल वर्ल्ड आत्माओं की है, उनको ब्रह्माण्ड, ब्रह्म लोक कहते हैं। जहाँ आत्मायें अण्डे मिसल रहती हैं। साक्षात्कार भी करते हैं आत्मा बिन्दी रूप है। जैसे फायरफ्लाई (जुगनू) जब इकट्ठे उड़ते हैं तो जगमग होती है, परन्तु वह लाइट कम है। तो आत्मायें भी इकट्ठी उड़ेंगी।
इस छोटी सी बिन्दी में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। बाबा तुमको सारे ड्रामा का साक्षात्कार कराते हैं। जिस ड्रामा के अन्दर आत्मा एक्टर है और एक्टर्स को इस ड्रामा का पता नहीं है। तुमको याद करना है एक बाबा को, दूसरा नॉलेज को। ज्ञान तो सेकेण्ड का बहुत सिम्पल है। परन्तु ज्ञान शुरू कब से हुआ, विस्तार करना पड़ता है क्योंकि भूल जाता है। माया के विघ्न भी पड़ते हैं। शारीरिक बीमारी आ जाती है। आगे कभी बुखार नहीं हुआ होगा, ज्ञान में आने के बाद बुखार हो जाता है तो संशय पड़ जाता है कि ज्ञान में तो बंधन खलास होने चाहिए। परन्तु बाबा तो कह देते यह बीमारी और आयेंगी, हिसाब-किताब भी चुक्तू करना है।
भक्ति में मनुष्य 9 रत्नों की अंगूठी पहनते हैं। बीच में वैल्युबुल रत्न लगाते हैं। आजूबाजू कम कीमत वाले। कोई रत्न हजार वाला होता है, कोई 100 वाला …… बाबा कहते हैं कि यह हीरे जैसी अमूल्य जीवन है। तो सूर्यवंशी में जन्म लेना चाहिए। सतयुग का महाराजा, महारानी और त्रेता के अन्त का राजा रानी कितना फ़र्क होगा।
यह ड्रामा की कहानी औरों को भी समझानी है। आओ तो हम आपको समझायें कि 5 हजार वर्ष पहले एक बहुत अच्छा देवताओं का राज्य था। उन्होंने यह पद कैसे पाया! लक्ष्मी-नारायण जो सतयुग की राजाई लेते हैं, उन्हों के 84 जन्मों की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनायें। ऐसे-ऐसे टेम्पटेशन (प्रलोभन) देकर उन्हों को अन्दर ले आना चाहिए। सेकेण्ड की कहानी है। परन्तु है पदमों की।
कहाँ भी तुम जा सकते हो। कॉलेज में, युनिवर्सिटी में, हॉस्पिटल में जाओ तो कहना चाहिए कि तुम कितना बीमार पड़ते हो। हम आपको ऐसी दवाई देंगे जो 21 जन्म बीमार ही नहीं पड़ेंगे। आपने सुना है कि परमात्मा ने कहा है मनमनाभव। तुम बाप को याद करेंगे तो विकर्म विनाश होंगे और कोई नये विकर्म होंगे ही नहीं। तुम एवरहेल्दी, वेल्दी बन जायेंगे। आओ तो हम परमपिता परमात्मा की बायोग्राफी बतायें। परमात्मा को सर्वव्यापी कहना कोई यह बायोग्राफी थोड़ेही है। ऐसे-ऐसे समझाना चाहिए।
गीत:- “धरती को आकाश पुकारे…” अच्छा – आज तो भोग है। इसको कहा जाता है पुरानी झूठी दुनिया। इसको रौरव नर्क कहा जाता है। गीत भी अच्छा है कि आना ही होगा, प्रेम की दुनिया में। सूक्ष्मवतन में भी प्रेम है ना। देखो, ध्यान में खुशी-खुशी जाते हैं। सतयुग में भी सुख है, यहाँ तो कुछ नहीं है। तो इस दुनिया से वैराग्य आना चाहिए। संन्यासियों का तो है हद का वैराग्य। तुम्हारा तो है बेहद का वैराग्य। तुम्हें तो सारी दुनिया को भुलाना है।
बाबा ने बाम्बे में एक पत्र लिखा था। बाबा सिर्फ बाम्बे वालों को ही नहीं कहते परन्तु सब सेन्टर्स वालों के लिए बाबा की राय निकलती है। तुमको भाषण करना होता है सुबह और शाम को। तो हर एक शहर में बड़े-बड़े हाल तो होते ही हैं और बहुतों के मित्र-संबंधी भी होते हैं, तो एडवरटाइज़ करनी है कि हमको परमपिता परमात्मा का परिचय देना है। ताकि सभी परमात्मा से अपना बर्थराइट ले सकें।
हमको सिर्फ डेढ़ घण्टा सुबह, डेढ़ घण्टा शाम के लिए हाल चाहिए। कोई हंगामा नहीं होगा, बाजा-गाजा नहीं। तो कोई वाजिब किराये पर देवे तो हम ले सकते हैं। एरिया को भी देखना है, घर को भी देखना है कि अच्छा है। अच्छा आदमी होगा तो अच्छे जिज्ञासुओं को लेकर आयेगा। ऐसे-ऐसे 4-5 जगह भाषण करना चाहिए। बड़े-बड़े शहरों में अगर फर्स्ट फ्लोर न मिले तो सेकेण्ड फ्लोर, नहीं तो लाचारी हालत में थर्ड फ्लोर भी ले सकते हो।
ऐसे ही गाँव-गाँव में भी। जैसा गाँव हो। भले कोई छोटा मकान हो। पूरा मकान तो चाहिए नहीं। सिर्फ 3 पैर पृथ्वी चाहिए। सबको अपने सम्बन्धियों से बात करते रहना चाहिए तो कोई न कोई दे देंगे। तो ऐसे सेन्टर्स खोलते रहना चाहिए। कोई तो किराया भी नहीं लेंगे। और कोई लेते-लेते अगर तीर लग गया तो वह भी लेना बन्द कर देंगे। जो विशालबुद्धि होंगे वह अच्छा समझकर धारण करेंगे। जिनकी विशालबुद्धि है, उनको महारथी कहा जाता है। वह तो एक दो के पिछाड़ी सेन्टर्स खोलते जायेंगे।
बच्चे जानते हैं कि हम अपना राज्य श्रीमत पर गुप्त ही गुप्त स्थापन कर रहे हैं। और कोई जान नहीं सकते कि कैसे स्थापन करते हैं? बस पवित्र रहना है। तो बाबा ने कहा है कि माया ने दु:ख दिया है, इसको छोड़ो। माया जीते जगत-जीत बनो। मन को जीतने की बात नहीं। मन तो शान्त, शान्तिधाम में रहता है। यहाँ शरीर है तो शान्त रह न सके। तो शान्ति-धाम है परमधाम।
यहाँ समझानी मिलती है तो चिन्तन भी चलता रहे। वहाँ सेन्टर पर आया, कथा सुनी और धन्धे में लग गये खलास। यहाँ ताजा-ताजा रहता है इसलिए बच्चे रिफ्रेश होने के लिए आते हैं। दुनिया वालों की बुद्धि में नहीं रहता कि भारत परमात्मा का बर्थ प्लेस (जन्म-स्थान) है। यहाँ सुनने से तुमको नशा रहता है कि हम शरीर छोड़ अमरलोक में जायेंगे। सतयुग में यह नहीं होगा कि फलाना मर गया। नहीं, जब पुराना चोला छोड़ेंगे, नया लेंगे तो खुशी होगी ना। बाजा बजेगा। अच्छा!
“मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) इस बेहद की दुनिया से वैराग्य रख इसे बुद्धि से भूलना है। अविनाशी ज्ञान रत्न धारण कर भविष्य के लिए धनवान बनना है।
2) नई दुनिया के लिए बाप जो बातें सुनाते हैं वह याद रखनी है। बाकी सब पढ़ा हुआ भूल जाना है, ऐसा जीते जी मरना है।
वरदान:- “कल्याणकारी युग में स्वयं का और सर्व का कल्याण करने वाले प्रकृतिजीत, मायाजीत भव”
इस कल्याणकारी युग में, कल्याणकारी बाप के साथ-साथ आप बच्चे भी कल्याणकारी हो। आपकी चैलेन्ज है कि हम विश्व परिवर्तक हैं। दुनिया वालों को सिर्फ विनाश दिखाई देता इसलिए समझते हैं – यह अकल्याण का समय है लेकिन आपके सामने विनाश के साथ स्थापना भी स्पष्ट है और मन में यही शुभ भावना है कि अब सर्व का कल्याण हो। मनुष्यात्मायें तो क्या प्रकृति का भी कल्याण करने वाले ही प्रकृतिजीत, मायाजीत कहलाते हैं, उनके लिए प्रकृति सुखदाई बन जाती है।
स्लोगन:- “न्यारे-प्यारे होकर कर्म करने वाले ही संकल्पों पर सेकण्ड में फुलस्टॉप लगा सकते हैं। “ – ओम् शान्ति।
मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे।
अच्छा – ओम् शान्ति।
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नोट: यदि आप “मुरली = भगवान के बोल” को समझने में सक्षम नहीं हैं, तो कृपया अपने शहर या देश में अपने निकटतम ब्रह्मकुमारी राजयोग केंद्र पर जाएँ और परिचयात्मक “07 दिनों की कक्षा का फाउंडेशन कोर्स” (प्रतिदिन 01 घंटे के लिए आयोजित) पूरा करें।
खोज करो: “ब्रह्मा कुमारिस सेंटर मेरे आस पास”.
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