“हम ईश्वर के दरबार में कुछ भी जमा कैसे कर सकते?“

Ma Jagdamba , माँ जगदम्बा स्वरस्वती
Ma Jagdamba , माँ जगदम्बा स्वरस्वती

मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य :-

उत्तर:- “जब तक हम व्यावहारिक रूप से ईश्वर की संतान नहीं बन जाते, हम ईश्वर के दरबार में कुछ भी जमा नहीं कर सकते।“

कई मनुष्य ऐसे समझते हैं कि हम जो भी कुछ कर्म करते हैं, चाहे अच्छे चाहे बुरे कर्म करते हैं उनका फल अवश्य मिलता है। जैसे कोई दान पुण्य करते हैं, यज्ञ हवन करते हैं, पाठ पूजा करते हैं वो समझते हैं कि हमने ईश्वर के अर्थ जो भी दान किया वो परमात्मा के दरबार में दाखिल हो जाता है। जब हम मरेंगे तो वो फल अवश्य मिलेगा और हमारी मुक्ति हो जायेगी,

परन्तु यह तो हम जान चुके हैं कि इस करने से कोई सदाकाल के लिये फायदा नहीं होता। यह तो जैसे जैसे कर्म करेंगे उससे अल्प-काल क्षणभंगुर सुख की प्राप्ति अवश्य होती है। मगर जब तक यह प्रैक्टिकल जीवन सदा सुखी नहीं बनी है तब तक उसका रिटर्न नहीं मिल सकता।

भल हम किससे भी पूछेंगे यह जो भी तुम करते आये हो, यह करने से तुम्हें पूरा लाभ मिला है? तो यह सुनने से वो लाजवाब हो जाते हैं। अब परमात्मा के पास दाखिल हुआ या नहीं हुआ वो हमें क्या मालूम?

What is Rajyoga?. राजयोग क्या है?
What is Rajyoga?. राजयोग क्या है?

जब तक अपनी प्रैक्टिकल जीवन में कर्म श्रेष्ठ नहीं बने हैं तब तक कितनी भी मेहनत करेंगे तो भी मुक्ति जीवनमुक्ति प्राप्त नहीं करेंगे। अच्छा, दान पुण्य किया लेकिन उस करने से कोई विकर्म तो भस्म नहीं हुए, फिर मुक्ति जीवनमुक्ति कैसे प्राप्त होगी! भले इतने संत महात्मायें हैं जब तक उन्हों को कर्मों की नॉलेज नहीं है तब तक वो कर्म अकर्म नहीं हो सकते, न वह मुक्ति जीवनमुक्ति को प्राप्त करेंगे।

उन्हों को भी यह मालूम नहीं है कि सतधर्म क्या है और सतकर्म क्या है, सिर्फ मुख से राम राम कहना इससे कोई मुक्ति नहीं होगी। बाकी ऐसे समझ बैठना कि मरने के बाद हमारी मुक्ति होगी, ऐसे को भी बेसमझ कहा जायेगा। उन्हों को यह पता ही नहीं कि मरने के बाद क्या फायदा मिलेगा? कुछ भी नहीं। बाकी तो मनुष्य अपने जीवन में चाहे बुरे कर्म करें, चाहे अच्छा कर्म करें वो भी इस ही जीवन में भोगना है।

अब यह सारी नॉलेज हमें परमात्मा टीचर द्वारा मिल रही है कि कैसे शुद्ध कर्म करके अपनी प्रैक्टिकल जीवन बनानी है।

अच्छा। ओम् शान्ति।

SOURSE: 1-10-2022 प्रात: मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन.

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