“मुक्ति और जीवनमुक्ति की स्टेज”
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य :- “मुक्ति और जीवनमुक्ति की स्टेज”
मुक्ति और जीवनमुक्ति दोनों स्टेज अपनी-अपनी हैं, अब जब हम मुक्ति अक्षर कहते हैं तो मुक्ति का अर्थ है आत्मा शरीर के पार्ट से मुक्त है, गोया आत्मा का शरीर सहित इस सृष्टि पर पार्ट नहीं है। जब आत्मा का मनुष्य हस्ती में पार्ट नहीं है गोया आत्मा निराकारी दुनिया में है, सुख दु:ख से न्यारी दुनिया में है इसको ही मुक्त स्टेज कहते हैं। इसे कोई मुक्ति पद नहीं कहते और
जो आत्मा कर्मबन्धन से मुक्त है अर्थात् शरीर के पार्टधारी होते भी वो कर्मबन्धन से न्यारी है, तो उसे जीवनमुक्त पद कहते हैं जो सबसे ऊंची स्टेज है। वो है हमारी देवताई प्रालब्ध, इस ही जन्म में पुरुषार्थ करने से यह सतयुगी देवताई प्रालब्ध मिलती है, वो है हमारा ऊंच पद परन्तु
जो आत्मा पार्ट में नहीं है उन्हों को पद कैसे कहें? जब आत्मा का स्टेज पर पार्ट नहीं है तो मुक्ति कोई पद नहीं है। अब इतने जो मनुष्य सम्प्रदाय हैं वो कोई सबके सब सतयुग में नहीं चलते क्योंकि वहाँ मनुष्य सम्प्रदाय कम रहती है। तो जो जितना प्रभु के साथ योग लगाए कर्मातीत बने हैं, वो सतयुगी जीवनमुक्त देवी देवता पद पाते हैं।
बाकी जो धर्मराज की सज़ायें खाकर कर्मबन्धन से मुक्त हो शुद्ध बन मुक्तिधाम में जाते हैं, वह मुक्ति में हैं लेकिन मुक्तिधाम में कोई पद नहीं है, वह स्टेज तो बिगर पुरुषार्थ आपेही अपने समय पर मिल ही जाती है।
जो मनुष्यों की चाहना द्वापर से लेकर कलियुग के अन्त तक उठती आई है कि हम जन्म-मरण के चक्र में न आवें, वो आश अब पूर्ण होती है। मतलब तो सर्व आत्माओं को वाया मुक्तिधाम से पास अवश्य होना है।
अच्छा – ओम् शान्ति।
SOURSE: 16-6-2022 प्रात: मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन.