“बहुत सारे प्रमाण हैं कि ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है।“
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य :
अब यह जो शिरोमणी गीता में भगवानुवाच है बच्चे, जहाँ जीत है वहाँ मैं हूँ, यह भी परमात्मा के महावाक्य हैं। पहाड़ों में जो हिमालय पहाड़ है उसमें मैं हूँ और सांपों में काली नाग मैं हूँ इसलिए पर्वत में ऊंचा पर्वत कैलाश पर्वत दिखाते हैं और सांपों में काली नाग, तो इससे सिद्ध है कि परमात्मा अगर सर्व सांपों में केवल काले नाग में है, तो सर्व सांपों में उसका वास नहीं हुआ ना। अगर परमात्मा ऊंचे ते ऊंचे पहाड़ में है गोया नीचे पहाड़ों में नहीं है और फिर कहते हैं जहाँ जीत वहाँ मेरा जन्म, गोया हार में नहीं हूँ। अब यह बातें सिद्ध करती हैं कि परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है।
एक तरफ ऐसे भी कहते हैं और दूसरे तरफ ऐसे भी कहते हैं कि परमात्मा अनेक रूप में आते हैं, जैसे परमात्मा को 24 अवतारों में दिखाया है, कहते हैं कच्छ मच्छ आदि सब रूप परमात्मा के हैं। अब यह है उन्हों का मिथ्या ज्ञान, ऐसे ही परमात्मा को सर्वत्र समझ बैठे हैं जबकि इस समय कलियुग में सर्वत्र माया ही व्यापक है तो फिर परमात्मा व्यापक कैसे ठहरा? गीता में भी कहते हैं कि मैं फिर माया में व्यापक नहीं हूँ, इससे सिद्ध है कि परमात्मा सर्वत्र नहीं है।
अच्छा – ओम् शान्ति।
SOURSE: 27-10-2022 प्रात: मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन.
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Om Shanti Bhai Ji,
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Om Shanti.
Bk Asit Bali