“परमात्मा सुख दाता है न कि दु:ख दाता”
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य –
यह तो सभी मनुष्य जानते हैं कि तकदीर बनाने वाला एक है वही परमात्मा है। कहावत भी है कि तकदीर बनाने वाला जरा सामने तो आ.. तो यह सारी महिमा अथवा गायन एक परमात्मा का है। इतना समझते हुए भी जब कोई कष्ट आता है, तो दु:खी होने कारण कह देते हैं यह दु:ख सुख, भला बुरा यह तकदीर परमात्मा ने बनाई है। फिर कह देते हैं प्रभु का दिया हुआ मीठा करके भोगना है। इसमें ही अपने को संतुष्ट रखें,
अब प्रभु का भाणा (दिया हुआ फल) भी उनको मीठा रहने थोड़ेही देता है, परन्तु मनुष्यों को इतनी भी बुद्धि नहीं है कि हम परमात्मा को यह दोष क्यों देते हैं! यह दोष तो खुद मनुष्य का है। मनुष्य ने जो भी कर्म किये हैं, उसे भोगना पड़ता है। तो हरेक अपने-अपने कर्मों अनुसार भोगता है। फिर अगर कोई श्रेष्ठ कर्म करते हैं तो सुख भोगते हैं और कोई भ्रष्ट कर्म करते हैं तो दु:खी बनते हैं।
अब उस भाणे को भी मीठा कर भोगने के लिये मनुष्य को पहले समझ होनी चाहिए इसलिए परमात्मा आकर खुद ज्ञान और योग सिखलाते हैं। अब यह कायदा है जो जो माया का साथ छोड़ परमात्मा का साथ लेता है, तो माया फिर उनका पीछा नहीं छोड़ती है, बहुत विघ्न डालती है।
अब परमात्मा के सदके जो भी कुछ सहन करते हैं, वो भोगना मीठी लगती है। वो हमें माइट और लाइट दे देते हैं। अब परमात्मा कहते हैं बच्चे, बिगड़ी हुई तकदीर मैं बनाता हूँ, तो मैं तकदीर को बनाने वाला हूँ। बाकी जो मनुष्य अपने आप विस्मृत करते हैं, वो अपनी तकदीर आपेही बिगाड़ते हैं परन्तु जो मनुष्य मेरे मिलने अर्थ भोगना भोगते हैं, उनके लिये जवाबदार मैं हूँ।
अब वो भी तब होगा जब ऐसे कहेंगे कि परमात्मा तेरी मेरी एक मर्जी हो, भले लाखों दुनिया वाले कुछ भी कहें परन्तु उन्हों को पूर्ण निश्चय है कि हमको पढ़ाने वाला स्वयं परमात्मा है, मैंने उससे सौदा किया है,
अब मैं किसकी परवाह रखूँ! तभी तो कहते हैं परवाह रही पार ब्रह्म की वह मिल गया….. अब परमात्मा कहते हैं जो सिर्फ मेरी ही सुनते हैं और मुझे ही देखते हैं, ऐसी सीढ़ी पर जिसने पाँव रखा है, उन्हों को भल माया की लहर हिलायेगी भी, परन्तु जिनको पूरा निश्चय हो चुका है वो तो प्रभु का हाथ कभी नहीं छोड़ेंगे। बाकी ऐसा न हो जरा सी माया की उछल में आये अपनी तकदीर को लकीर लगा देवे। तकदीर को बिगाड़ना और बनाना यह मनुष्य के हाथ में है।
SOURSE: 19-4-2022 प्रात: मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन.
अच्छा – ओम् शान्ति।