“निरंतर ईश्वरीय याद की बैठक”
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य :-
अब जब परमात्मा की याद में बैठते हो तो बैठने का मतलब क्या है? हमें सिर्फ परमात्मा की याद में बैठना नहीं है परन्तु अपनी ईश्वरीय याद तो नित्य चलते फिरते हर समय करनी है और याद भी उस वस्तु की रहती है जिसका परिचय हो।
उसका नाम रूप क्या है, अगर हम कहें ईश्वर नाम रूप से न्यारा है तो फिर किस रूप को याद करें? अगर कहें ईश्वर सर्वव्यापी है तो उनकी व्यापकता तो सर्वत्र हो गई तो फिर याद किसको करें, अगर याद शब्द है तो अवश्य याद का रूप भी होगा। याद का मतलब है एक याद करने वाला, दूसरा जिसको याद करते हो तो जरूर याद करने वाला उनसे भी भिन्न है, तो फिर ईश्वर सर्वव्यापी नहीं ठहरा।
अगर कोई कहे हम आत्मायें परमात्मा की अंश हैं तो क्या परमात्मा भी टुकड़ा टुकड़ा होता है? फिर तो परमात्मा विनाशी ठहरा! उनकी याद भी विनाशी हुई। अब इस बात को लोग नहीं जानते, परमात्मा भी अविनाशी है, हम उस अविनाशी परमपिता परमात्मा की संतान आत्मा भी अविनाशी हैं। तो हम वंश ठहरे न कि अंश।
अब यह चाहिए नॉलेज, जो परमात्मा स्वयं आकर हम बच्चों को देते हैं। परमात्मा के हम बच्चों के प्रति महावाक्य हैं “बच्चे, मैं जो हूँ जैसा हूँ उस रूप को याद करने से तुम मुझे अवश्य प्राप्त करोगे। अगर मैं दु:ख सुख से न्यारा पिता सर्वव्यापी होता तो फिर खेल में सुख दु:ख नहीं होता। तो मैं सर्वव्यापी नहीं हूँ, मैं भी आत्मा सदृश्य आत्मा हूँ लेकिन सर्व आत्माओं से मेरे गुण परम हैं इसलिए मुझे परम आत्मा अर्थात् परमात्मा कहते हैं।“ अच्छा !
। ओम् शान्ति।
[SOURSE: 6-10-2021 प्रात: मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन.]