17-1-2023 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “तुम्हें निराकार बाप से पढ़कर राजाओं का राजा बनना है”
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शिव भगवानुवाच : “मीठे बच्चे – तुम इस पाठशाला में आये हो अपनी ऊंची तकदीर बनाने, तुम्हें निराकार बाप से पढ़कर राजाओं का राजा बनना है”
प्रश्नः कई बच्चे हैं भाग्यशाली लेकिन बन जाते हैं दुर्भाग्यशाली कैसे?
उत्तर:- वह बच्चे भाग्यशाली हैं – जिन्हें कोई भी कर्मबन्धन नहीं है अर्थात् कर्म बन्धनमुक्त हैं। परन्तु फिर भी यदि पढ़ाई में अटेन्शन नहीं देते, बुद्धि इधर उधर भटकती रहती है, एक बाप जिससे इतना भारी वर्सा मिलता, उसे याद नहीं करते हैं तो भाग्यशाली होते भी दुर्भाग्यशाली ही कहेंगे।
प्रश्नः श्रीमत में कौन–कौन से रस भरे हुए हैं?
उत्तर:- श्रीमत ही है – जिसमें मात–पिता, टीचर, गुरू सबकी मत इकट्ठी है। श्रीमत जैसे सैक्रीन है, जिसमें यह सब रस भरे हुए हैं।
गीत:- “तकदीर जगाकर आई हूँ………………..!”, अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.
-: ज्ञान के सागर और पतित–पावन निराकार शिव भगवानुवाच :-
अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रति – “मुरली”( यह अपने सब बच्चों के लिए “स्वयं भगवान द्वारा अपने हाथो से लिखे पत्र हैं।”)
“ओम् शान्ति”
शिव भगवानुवाच: शिव भगवानुवाच, मनुष्य जब गीता सुनाते हैं तो श्रीकृष्ण का नाम लेकर सुनाते हैं। यहाँ तो जो सुनाते हैं कहते हैं शिव भगवानुवाच। खुद भी कह सकते हैं शिव भगवानुवाच, क्योंकि शिवबाबा स्वयं ही बोलते हैं। दोनों इक्ट्ठे भी बोल सकते हैं। बच्चे तो दोनों के हैं। बच्चे और बच्चियां दोनों बैठे हुए हैं। तो कहते हैं बच्चे समझते हो कि कौन पढ़ाते हैं? कहेंगे बापदादा पढ़ाते हैं।
बाप बड़े को, दादा छोटे को अर्थात् भाई को कहा जाता है। तो बापदादा इक्ट्ठा कहा जाता है। अब बच्चे भी जानते हैं कि हम स्टूडेन्ट हैं, स्कूल में स्टूडेन्ट बैठे ही हैं तकदीर बनाने के लिए कि हम पढ़कर फलाना इम्तहान पास करेंगे। वह जिस्मानी इम्तहान तो बहुत होते हैं। यहाँ तुम बच्चों की दिल में है कि हमको बेहद का बाप परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं। बाप इस (ब्रह्मा) को नहीं कहते हो।
निराकार बाप समझाते हैं, तुम जानते हो हम बाप से राजयोग सीख राजाओं का राजा बनते हैं। राजायें भी होते हैं और फिर राजाओं के राजायें भी होते हैं। जो राजाओं के राजायें हैं, उन्हों को राजायें भी पूजते हैं। यह रिवाज भारत खण्ड में ही है। पतित राजायें पावन राजाओं को पूजते हैं। बाप ने समझाया है महाराजा बड़ी प्रापर्टी वाले को कहा जाता है। राजे लोग छोटे होते हैं। आजकल तो कोई–कोई राजाओं की महाराजाओं से भी जास्ती प्रापर्टी होती है। कोई–कोई साहूकारों को राजाओं से भी जास्ती प्रापर्टी होती है। वहाँ ऐसे अनलाफुल नहीं होता। वहाँ तो सब कुछ कायदे अनुसार होगा। बड़े महाराजा पास बड़ी प्रापर्टी होगी।
तो तुम बच्चे जानते हो हमको बेहद का बाप बैठ पढ़ाते हैं। परमात्मा बिगर राजाओं का राजा, स्वर्ग का मालिक कोई बना नहीं सकता। स्वर्ग का रचयिता है ही निराकार बाप। उनका नाम भी गाते हैं हेविनली गॉड फादर। बाप साफ समझाते हैं मैं तुम बच्चों को फिर से स्वराज्य देकर राजाओं का राजा बनाता हूँ। अब तुम जानते हो हम तकदीर बनाकर आये हैं, बेहद के बाप से राजाओं का राजा बनने। कितनी खुशी की बात है।
बड़ा भारी इम्तहान है। बाबा कहते हैं श्रीमत पर चलो, इसमें मात–पिता, टीचर, गुरू आदि सबकी मत इकट्ठी है। सबकी सैक्रीन बनी हुई है। सभी का रस एक में भरा हुआ है। सबका साजन एक है। पतित से पावन बनाने वाला वह बाप ठहरा। गुरूनानक ने भी उनकी महिमा की है तो जरूर उनको याद करना पड़े। पहले वह अपने पास ले जायेगा फिर पावन दुनिया में भेज देगा।
कोई भी आये तो उनको समझाना है – यह गॉडली कालेज है। भगवानुवाच, और स्कूलों में तो कभी भगवानुवाच नहीं कहेंगे। भगवान है ही निराकार ज्ञान का सागर, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप.. तुम बच्चों को बैठ पढ़ाता हूँ। यह गॉडली नॉलेज है। सरस्वती को गॉडेज़ आफ नॉलेज कहते हैं। तो जरूर गाडली नॉलेज से गॉड–गाडेज ही बनते होंगे। बैरिस्टरी नॉलेज से बैरिस्टर ही बनेंगे। यह है गाडली नॉलेज। सरस्वती को गाड ने नॉलेज दी है। तो जैसे सरस्वती गॉडेज आफ नॉलेज है, वैसे तुम बच्चे हो। सरस्वती को बहुत बच्चे हैं ना। परन्तु हर एक गॉडेज आफ नॉलेज कहलाये जायें, यह नहीं हो सकता।
इस समय अपने को गॉडेज नहीं कह सकते। वहाँ भी तो देवी–देवतायें ही कहेंगे। गॉड नॉलेज बरोबर देते हैं। लेसन ऐसे धारण कराते हैं। यह मर्तबा देते हैं बड़ा। बाकी देवतायें गॉड गाडेज तो हो नहीं सकते। यह मात–पिता तो जैसे कि गॉड गाडेज हो जाते। परन्तु हैं तो नहीं ना। निराकार बाप को गाड फादर कहेंगे। इन (साकार) को गॉड थोड़ेही कहेंगे। यह बड़ी गुह्य बातें हैं। आत्मा और परमात्मा का रूप और फिर सम्बन्ध कितनी गुह्य बातें हैं। वह जिस्मानी सम्बन्ध काका, चाचा, मामा आदि तो कामन हैं। यह तो है रूहानी सम्बन्ध। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। मात–पिता अक्षर गाते हैं तो जरूर कोई अर्थ है ना। वह अक्षर अविनाशी बन जाता है। भक्तिमार्ग में भी चला आता है।
तुम बच्चे जानते हो हम स्कूल में बैठे हैं। पढ़ाने वाला ज्ञान सागर है। इनकी आत्मा भी पढ़ती है। इस आत्मा का बाप वह परमात्मा है, जो सभी का बाप है, वह पढ़ाते हैं। उनको गर्भ में तो आना नहीं है, तो नॉलेज कैसे पढ़ायें। वह आते हैं ब्रह्मा के तन में। उन्होंने फिर ब्रह्मा के बदले श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। यह भी ड्रामा में हैं। कुछ भूल हो तब तो बाप आकर इस भूल को करेक्ट कर अभुल बनाये। निराकार को न जानने कारण ही मूँझ गये हैं।
बाप समझाते हैं मैं तुम्हारा बेहद का बाप बेहद का वर्सा देने वाला हूँ। लक्ष्मी–नारायण स्वर्ग के मालिक कैसे बने, यह कोई भी नहीं जानते। जरूर कोई ने तो कर्म सिखाये होंगे ना और वह भी जरूर बड़ा होगा, जो इतना ऊंच पद प्राप्त कराया। मनुष्य कुछ भी नहीं जानते। बाप कितना प्यार से समझाते हैं, कितनी बड़ी अथॉरिटी है। सारी दुनिया को पतित से पावन बनाने वाला मालिक है।
समझाते हैं यह बना–बनाया ड्रामा है। तुमको चक्र लगाना होता है। इस बनावट को कोई भी जानते नहीं। ड्रामा में कैसे हम एक्टर्स हैं, यह चक्र कैसे फिरता है, दु:खधाम से सुखधाम कौन बनाते हैं, यह तुम जानते हो। तुमको सुखधाम के लिए पढ़ाता हूँ। तुम ही 21 जन्मों के लिए सदा सुखी बनते हो और कोई वहाँ जा न सके। सुखधाम में जरूर थोड़े मनुष्य होंगे। समझाने लिए प्वाइंटस बहुत अच्छी चाहिए।
कहते तो हैं बाबा हम आपके हैं, परन्तु पूरा बनने में टाइम लगता है। कोई का कर्मबन्धन झट छूट जाता है, कोई को टाइम लगता है। कई तो ऐसे भाग्यशाली भी हैं जिनका कर्मबन्धन टूटा हुआ है, परन्तु पढ़ाई में अटेन्शन नहीं देते हैं तो उनको कहा जाता है दुर्भाग्यशाली। पुत्र, पोत्रे, धोत्रे आदि में बुद्धि चली जाती है। यहाँ तो एक को ही याद करना है। बहुत भारी वर्सा मिलता है। तुम जानते हो हम राजाओं के राजा बनते हैं। पतित राजायें कैसे बनते हैं और पावन राजाओं के राजा कैसे बनते हैं, वह भी बाप तुमको समझाते हैं।
मैं स्वयं आकर राजाओं का राजा स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ – इस राजयोग से। वह पतित राजायें तो दान करने से बनते हैं। उन्हों को मैं थोड़ेही आकर बनाता हूँ। वह बहुत दानी होते हैं। दान करने से राजाई कुल में जन्म लेते हैं। मैं तो 21 जन्मों के लिए तुमको सुख देता हूँ। वह तो एक जन्म के लिए बनते सो भी पतित दु:खी रहते हैं। मैं तो आकर बच्चों को पावन बनाता हूँ। मनुष्य समझते हैं सिर्फ गंगा स्नान करने से पावन बनते हैं, कितने धक्के खाते हैं। गंगा जमुना आदि की कितनी महिमा करते हैं। अब इसमें महिमा की तो बात ही नहीं।
पानी सागर से आता है। ऐसे तो बहुत नदियां हैं। विलायत में भी बड़ी–बड़ी नदियां खोदकर बनाते हैं, इसमें क्या बड़ी बात है। ज्ञान सागर और ज्ञान गंगायें कौन हैं, यह तो जानते ही नहीं। शक्तियों ने क्या किया, कुछ भी जानते नहीं। वास्तव में ज्ञान गंगा अथवा ज्ञान सरस्वती यह जगदम्बा है। मनुष्य तो जानते ही नहीं, जैसे भील हैं। बिल्कुल ही बुद्धू, बेसमझ हैं। बाप आकर बेसमझ को कितना समझदार बनाते हैं।
तुम बता सकते हो इन्हों को राजाओं का राजा किसने बनाया। गीता में भी है मैं राजाओं का राजा बनाता हूँ। मनुष्य तो यह जानते नहीं। हम खुद भी नहीं जानते थे। यह जो खुद बना था, अब नहीं है, वही नहीं जानता तो और फिर कैसे जान सकते। सर्वव्यापी के ज्ञान में कुछ भी है नहीं, योग किसके साथ लगायें, पुकारे किसको? खुद ही खुदा हैं फिर प्रार्थना किसकी करेंगे! बड़ा वन्डर है।
बहुत भक्ति जो करते हैं उनका मान होता है। भक्त माला भी है ना। ज्ञान माला है रूद्र माला। यह फिर भक्त माला। वह है निराकारी माला। सभी आत्मायें वहाँ रहती हैं। उनमें भी पहला नम्बर आत्मा किसकी है? जो नम्बरवन में जाते हैं, सरस्वती की आत्मा वा ब्रह्मा की आत्मा नम्बरवन पढ़ती है। यह आत्मा की बात है। भक्ति मार्ग में तो सब जिस्मानी बातें हैं – फलाना भक्त ऐसा था, उनके शरीर का नाम लेंगे। तुम मनुष्य को नहीं कहेंगे।
तुम जानते हो ब्रह्मा की आत्मा क्या बनती है। वह जाकर शरीर धारण कर राजाओं का राजा बनते हैं। आत्मा शरीर में प्रवेश कर राज्य करती है। अभी तो राजा नहीं है। राज्य करती तो आत्मा है ना। मैं राजा हूँ, मैं आत्मा हूँ, इस शरीर का मालिक हूँ। अहम् आत्मा शरीर का नाम श्री नारायण धराए फिर राज्य करेंगे। आत्मा ही सुनती और धारण करती है। आत्मा में संस्कार रहते हैं।
अब तुम जानते हो हम बाप से राजाई लेते हैं श्रीमत पर चलने से। बापदादा दोनों मिलकर कहते हैं बच्चे, दोनों को बच्चे कहने का हक है। आत्मा को कहते हैं निराकारी बच्चे, मुझ बाप को याद करो। और कोई कह न सके कि हे निराकारी बच्चे, हे आत्मायें मुझ बाप को याद करो। बाप ही आत्माओं से बात करते हैं। ऐसे तो नहीं कहते हे परमात्मा मुझ परमात्मा को याद करो। कहते हैं, हे आत्मायें मुझ बाप को याद करो तो इस योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। बाकी गंगा स्नान से कभी कोई पाप आत्मा से पुण्य आत्मा नहीं बन सकते।
गंगा स्नान कर फिर घर में आकर पाप करते हैं। इन विकारों के कारण ही पाप आत्मा बनते हैं। यह कोई समझते नहीं। बाप समझाते हैं कि अब तुमको राहू का कड़ा ग्रहण लगा हुआ है। पहले हल्का ग्रहण होता है। अब दे दान तो छूटे ग्रहण। प्राप्ति बहुत भारी है। तो पुरुषार्थ भी ऐसे करना चाहिए ना। बाप कहते हैं मैं तुमको राजाओं का राजा बनाऊंगा इसलिए मुझे और वर्से को याद करो। अपने 84 जन्मों को याद करो इसलिए बाबा ने नाम ही रखा है “स्वदर्शन चक्रधारी बच्चे।” तो स्वदर्शन का ज्ञान भी चाहिए ना।
बाप समझाते हैं – यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है। तुमको मैं नई दुनिया में ले चलता हूँ। संन्यासी सिर्फ घरबार को भूलते हैं, तुम सारी दुनिया को भूलते हो। यह बाप ही कहते हैं कि अशरीरी बनो। मैं तुमको नई दुनिया में ले चलता हूँ इसलिए पुरानी दुनिया से, पुराने शरीर से ममत्व तोड़ो। फिर नई दुनिया में तुमको नया शरीर मिलेगा। देखो, श्रीकृष्ण को श्याम–सुन्दर कहते हैं। सतयुग में वह गोरा था अब अन्तिम जन्म में काला हो गया है। तो कहेंगे ना श्याम ही सुन्दर बनता है, फिर सुन्दर से श्याम बनता है। तो नाम रख दिया है श्याम सुन्दर।
काला बनाते हैं 5 विकार रावण और फिर गोरा बनाते हैं परमपिता परमात्मा। चित्र में भी दिखाया है कि मैं पुरानी दुनिया को लात मार गोरा बन रहा हूँ। गोरी आत्मा स्वर्ग की मालिक बनती है। काली आत्मा नर्क की मालिक बनती है। आत्मा ही गोरी और काली बनती है। अब बाप कहते हैं तुमको पवित्र बनना है। वह हठयोगी पवित्र बनने के लिए बहुत हठ करते हैं। परन्तु योग बिगर तो पवित्र बन न सके, या तो सजायें खाकर पवित्र बनना पड़े इसलिए बाप को क्यों न याद करें और 5 विकारों को भी जीतना है।
बाप कहते हैं यह काम विकार ही आदि–मध्य–अन्त दु:ख देने वाला है। जो विकारों को नहीं जीत सकते वह वैकुण्ठ के राजा थोड़ेही बन सकते हैं इसलिए बाप कहते हैं देखो मैं तुमको कितने अच्छे कर्म सिखाता हूँ – बाप, टीचर, सतगुरू रूप में। योगबल से विकर्म विनाश कराए विकर्माजीत राजा बनाता हूँ। वास्तव में सतयुग के देवी–देवताओं को ही विकर्माजीत कहा जाता है। वहाँ विकर्म तो होते नहीं।
विकर्माजीत संवत और विक्रम संवत अलग–अलग है। एक राजा विक्रम भी होकर गया है और विकर्माजीत राजा भी हो गया है। हम अभी विकर्मों को जीत रहे हैं। फिर द्वापर से नये–सिर विकर्म शुरू होते हैं। तो नाम रख दिया है राजा विक्रम। देवतायें हैं विकर्माजीत। अभी हम वह बनते हैं फिर जब वाम मार्ग में आते हैं तो विकर्मों का खाता शुरू हो जाता है। यहाँ विकर्मो का खाता चुक्तू कर फिर हम विकर्माजीत बनते हैं। वहाँ कोई विकर्म होते नहीं।
तो बच्चों को यह नशा होना चाहिए कि हम यहाँ ऊंच तकदीर बनाते हैं। यह है बड़े ते बड़ी तकदीर बनाने की पाठशाला। सतसंग में तकदीर बनने की बात नहीं रहती। पाठशाला में हमेशा तकदीर बनती है। तुम जानते हो हम नर से नारायण अथवा राजाओं का राजा बनेंगे। बरोबर पतित राजायें, पावन राजाओं को पूजते हैं। मैं तुमको पावन बनाता हूँ। पतित दुनिया में तो राज्य नहीं करेंगे। अच्छा!
“मीठे–मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात–पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बुद्धि में स्वदर्शन चक्र का ज्ञान रख, राहू के ग्रहण से मुक्त होना है। श्रेष्ठ कर्म और योगबल से विकर्मों का खाता चुक्तू कर विकर्माजीत बनना है।
2) अपनी ऊंची तकदीर बनाने के लिए पढ़ाई पर पूरा–पूरा ध्यान देना है।
वरदान:- “बाह्यमुखता के रसों की आकर्षण के बन्धन से मुक्त रहने वाले जीवनमुक्त भव”
बाहयमुखता अर्थात् व्यक्ति के भाव–स्वभाव और व्यक्त भाव के वायब्रेशन, संकल्प, बोल और संबंध, सम्पर्क द्वारा एक दो को व्यर्थ की तरफ उकसाने वाले, सदा किसी न किसी प्रकार के व्यर्थ चिन्तन में रहने वाले, आन्तरिक सुख, शान्ति और शक्ति से दूर…..यह बाह्यमुखता के रस भी बाहर से बहुत आकर्षित करते हैं, इसलिए पहले इसको कैंची लगाओ। यह रस ही सूक्ष्म बंधन बन सफलता की मंजिल से दूर कर देते हैं, जब इन बंधनों से मुक्त बनो तब कहेंगे जीवनमुक्त।
स्लोगन:- “जो अच्छे बुरे कर्म करने वालों के प्रभाव के बन्धन से मुक्त साक्षी व रहमदिल है वही तपस्वी है।“ – ओम् शान्ति।
मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे।
अच्छा – ओम् शान्ति।
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